tag:blogger.com,1999:blog-1704691448069891835.post8479845526399317368..comments2024-02-21T08:21:08.716-08:00Comments on Lalit Surjan: उसमें प्राण जगाओ साथी- 19Lalit Surjanhttp://www.blogger.com/profile/15138419069864380384noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-1704691448069891835.post-37427197174365168122012-04-20T12:33:53.023-07:002012-04-20T12:33:53.023-07:00श्री सुरजन जी,
"उसमे प्राण जगाओ साथी." श...श्री सुरजन जी,<br />"उसमे प्राण जगाओ साथी." श्रृंखला के आलेख, श्रद्धेय बाबूजी के व्यक्तित्व और कृतित्व की गहराई को अन्वेषित करने का एक अनुपम और अभिनंदनीय प्रयास है.<br />आज जब समूचा परिवेश संसय और अविश्वास से ग्रस्त है. समाज में नैतिकता के सारे मानक जब धवस्त हो रहे है, लोकतंत्र का चेहरा हर दिन और भी विद्रूप हो रहा हो,<br />आम आदमी हर दिन और भी हताश और भी निरुपाय महसूस कर रहा हो. जब सत्ता का बहुमत लोकसेवा के छद्म में, अपने बहुमत को नैसर्गिक संसाधनों की खुली लुट के वैधानिक जनादेश में परिभाषित कर रहा हो,और लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो, समय के इस मुकाम पर पत्रकारिता के उस शिखर पुरुष को याद करना प्रासंगिक भी है और कहीं उनकी पुन्य स्मृतियों के आलोक में, इस गहन अँधेरे में नई राह और उर्जा की तलाश भी है , बाबूजी के जीवन दर्शन और पत्रकारिता के प्रति उनके समर्पण की छाया देशबंधु को आज भी दूसरो से अलग करती है.<br /> ''जो जीवन से हार गया हो, उसमें प्राण जगाओ साथी'' काश की समग्र कविता साथ में होती,<br />साहित्य वही है जो समय से संवाद करे. और शायद यही लेखन की सार्थकता भी है. <br />मेरी विनम्र शुभकामनाये.<br /><br />युगल गजेन्द्रyugalhttps://www.blogger.com/profile/03947139900621600136noreply@blogger.com