यह पिछले हफ्ते का वाकया है। मैं ओला टैक्सी लेकर कहीं जा रहा था। चुनावों के समय सामान्यत: हम पत्रकार ही विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधियों से चर्चा कर हवा का रुख भांपने का प्रयत्न करते हैं। इनमें टैक्सी ड्राइवरों से बात करना तो एक तरह से अनिवार्य होता है। उसकी वजह भी है। टैक्सी हो, रिक्शा हो, आटो हो, हर सवारी की अपनी अलग पृष्ठभूमि और अलग कहानी होती है। सवारियों के बीच या उनके साथ हुई चर्चा से ड्राइवर काफी-कुछ अनुमान लगा लेते हैं। इसलिए उन्हें विश्वसनीय स्रोत मान लिया जाता है। गो कि अब पहले जैसा भरोसा नहीं रह गया है। टैक्सी ड्राइवर कई बार सवाल पूछने वाले के इरादे समझकर उसके मनोनुकूल राय दे देते हैं। फिर ऐसे ड्राइवर भी हैं जो स्वयं राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं और वे अपनी प्रतिबद्धता के मुताबिक जानकारी देते हैं। खैर, तो हुआ यह कि इस वाकये में सवाल पूछने की शुरुआत मैंने नहीं, बल्कि टैक्सी ड्राइवर ने की। सुविधा के लिए हम उसका नाम विकास रख लेते हैं।
मैं किन्हीं अन्य ख्यालों में खोया था, जब मुझे लगभग चौंकाते हुए विकास ने अपना पहला सवाल मेरी उछाला। मैं कोई पंद्रह मिनट चले संवाद को अविकल पेश करने की कोशिश नीचे कर रहा हूं।
विकास- सर! आपको क्या लगता है, मोदीजी फिर से प्रधानमंत्री बन पाएंगे?
मैं- मालूम नहीं भाई, लेकिन मुझे इस बारे में शंका है।
वि. - मोदीजी नहीं तो फिर कौन बनेगा? उनके सामने कौन टिकेगा?
मैं- कौन बनेगा, यह मैं अभी नहीं कह सकता, लेकिन मोदीजी नहीं बनेंगे।
वि.- आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?
मैं- इसलिए कि मेरा वोट उनको नहीं जाएगा।
वि.- लेकिन मैं तो मोदीजी को ही वोट दूंगा।
मैं- ठीक है। आप अपनी पसंद से वोट कीजिए, मैं अपनी पसंद से।
वि.- पर आप उनको वोट क्यों नहीं देंगे?
मैं- मेरी बात छोड़ो। अपनी बताओ कि तुम उन्हें वोट क्यों दोगे?
वि.- वाह, उन्होंने इतना सारा काम किया है। बताइए, आज तक किसी और प्रधानमंत्री ने इतना काम किया है?
मैं- अच्छा! उन्होंने ऐसा कौन सा बड़ा काम किया है जो आपको पसंद आया हो।
वि.- उन्होंने स्वच्छता अभियान चलाया। अपने शहर में ही देखिए। कितना साफ-सुथरा हो गया है। पहले सब तरफ गंदगी, कूड़े के ढेर दिखाई देते थे।
मैं- विकास! मैं आपसे सहमत नहीं हूं। शहर तो आज भी पहले की तरह गंदगी से अटा पड़ा है। बस, कहीं-कहीं सफाई दिख जाती है।
वि.- नहीं सर! आपने फिर ठीक से देखा नहीं है। या आप मोदीजी के विरोधी हैं, इसलिए ऐसा कह रहे हैं।
मैं- चलिए, आपकी बात मान भी लें तो शहर की सफाई में मोदीजी का क्या योगदान है?
वि.- उनका नहीं तो किसका है?
मैं- भाई! शहर की सफाई का जिम्मा तो नगर निगम का है। मेयर का है। वार्ड पार्षद का है। फिर सबसे बढ़कर स्वयं नागरिकों का है। शहर की गंदगी साफ करना प्रधानमंत्री का काम नहीं है।
वि.- तो सर, आप ही बताइए, प्रधानमंत्री का काम क्या है?
मैं- विकास! आज देश में जो हालात हैं,उसमें प्रधानमंत्री को सबसे पहिले नौजवानों पर ध्यान देने की जरूरत है। जिस तरह से बेरोजगारी बढ़ रही है, उसे कैसे रोका जाए, युवाओं को काम कैसे मिले, यह सोचना उनका काम है। प्रधानमंत्री और देश की सरकार को खेती-किसानी पर भी अपना ध्यान लगाना चाहिए। किसान खुशहाल रहेगा तो सबको बरकत होगी।
वि.- खेती-किसानी की बात तो आपने ठीक की, लेकिन मैं नहीं मानता कि देश में बेरोजगारी कोई समस्या है।
मैं- आपको बेरेाजेगारी समस्या मालूम नहीं देती?
वि.- बिल्कुल नहीं सर! आपके छत्तीसगढ़ में देखिए, काम की कहां कमी है। छत्तीसगढ़िया काम करना ही नहीं चाहते।
मैं- आप छत्तीसगढ़ के नहीं हैं? कहीं बाहर से आए हैं?
वि.- नहीं सर, मैं तो पैदाइशी छत्तीसगढ़िया हूं। मेरे कहने का मतलब है कि यहां लोग-बाग काम करने से जी चुराते हैं। मुझको देखिए, नौकरी नहीं मिली तो ओला टैक्सी चलाकर चार पैसे कमा रहा हूं।
मैं- विकास! मैं आपकी तारीफ करता हूं कि आप एक मेहनतकश इंसान हैं और पसीना बहाकर अपना घर-बार चला रहे हैं। लेकिन आप ऐसा कैसे कहते हैं कि हमारे लोग काम से जी चुराते हैं?
वि.- आप ही सोचिए। इतने कारखाने खुल गए हैं। और भी कितने सारे अवसर हैं। लेकिन सब जगह यू.पी., बिहार के लोग आकर मेहनत-मजूरी कर रहे हैं। अगर हमारे लोग काम करते तो ये बाहर से मजदूर क्यों लाते?
मैं- आप जितना देख पा रहे हैं, उसके हिसाब से शायद आपकी बात ठीक है। लेकिन यह पूरी सच्चाई नहीं है।
वि.- तब तो आप बताइए सच्चाई क्या है?
मैं- सच्चाई यह है कि छत्तीसगढ़ के मेहनती लोग डेढ़ सौ साल से देश के कोने-कोने में रोजगार की तलाश में जाते रहे हैं। टाटानगर का इस्पात कारखाना, कलकत्ता की जूट मिलें, असम के चाय-बागान, जम्मू-कश्मीर का नेशनल हाईवे, मेरठ के ईंट भट्टे, सब तरफ छत्तीसगढ़िया मजदूरी करते आए हैं।
वि.- माफ कीजिए सर! यह बात मुझे मालूम नहीं थी। लेकिन जब वे इतने मेहनती हैं तो अपने घर में रहकर काम क्यों नहीं करते?
मैं- विकास! इसके पीछे जबरदस्त षड़यंत्र है। पूंजीपति, कारखानेदार, ठेकेदार, स्थानीय लोगों को नौकरी देना पसंद नहीं करते। बाहर से मजदूर आता है तो वह हाड़-तोड़ मेहनत करता है। वह छुट्टियां नहीं लेता। बारह-चौदह घंटे काम में लगा रहता है। उसे एक तरह से बंधक या गुलाम बना दिया जाता है। स्थानीय व्यक्ति गुलामी बर्दाश्त नहीं करेगा। वह वक्त-जरूरत छुट्टी भी लेगा। जबकि इजारेदार कम मजदूरी अधिक मुनाफे के सिद्धांत पर चलता है। अब जैसे आप ही हैं। आपकी जब मर्जी होगी, गाड़ी बंद कर घर जाकर सो जाएंगे।
वि.- आप जो कह रहे हैं, वह ठीक तो लगता है, फिर भी मेरा कहना है सर! रोजगार की कोई समस्या नहीं है।
मैं- ठीक है। आप मेरी बात मत मानिए। यह बताइए कि आपके बच्चे कितने हैं?
वि.- सर! एक बेटा है, कॉलेज में पढ़ रहा है।
मैं- आपने कभी उससे या उसके दोस्तों से पूछा कि वे पढ़ाई खत्म होने के बाद क्या करेंगे?
वि.- अभी तक तो नहीं पूछा।
मैं- तो अब पूछकर देखिए। यह जरूर पूछिए कि वह आपकी तरह दिन-रात टैक्सी चलाना पसंद करेगा या उसे किसी और नौकरी की तलाश होगी? आप उसके संगी-साथियों से भी पूछिए कि वे अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं या नहीं?
वि.- आपने सलाह दी है तो अवश्य पूछूंगा। बस एक आखिरी सवाल है। आपको जहां जाना था, वहां तक हम आ ही चुके हैं। तो इतना बताइए कि नरेंद्र मोदी नहीं तो प्रधानमंत्री कौन बनेगा?
मैं- भाई! सीधी सी बात है। जिस पार्टी को ज्यादा वोट मिलेंगे, ज्यादा सीटें मिलेंगी, उसी का कोई नेता प्रधानमंत्री बनेगा। हम जनतंत्र में रहते हैं। हमें अपनी याने मतदाता की ताकत को पहिचानना चाहिए। प्रधानमंत्री कोई भी बने, वह सही मायने में जनता की सेवा करे, जुमलेबाजी नहीं। बाकी आपका जो भी निर्णय हो।
मैं- मालूम नहीं भाई, लेकिन मुझे इस बारे में शंका है।
वि. - मोदीजी नहीं तो फिर कौन बनेगा? उनके सामने कौन टिकेगा?
मैं- कौन बनेगा, यह मैं अभी नहीं कह सकता, लेकिन मोदीजी नहीं बनेंगे।
वि.- आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?
मैं- इसलिए कि मेरा वोट उनको नहीं जाएगा।
वि.- लेकिन मैं तो मोदीजी को ही वोट दूंगा।
मैं- ठीक है। आप अपनी पसंद से वोट कीजिए, मैं अपनी पसंद से।
वि.- पर आप उनको वोट क्यों नहीं देंगे?
मैं- मेरी बात छोड़ो। अपनी बताओ कि तुम उन्हें वोट क्यों दोगे?
वि.- वाह, उन्होंने इतना सारा काम किया है। बताइए, आज तक किसी और प्रधानमंत्री ने इतना काम किया है?
मैं- अच्छा! उन्होंने ऐसा कौन सा बड़ा काम किया है जो आपको पसंद आया हो।
वि.- उन्होंने स्वच्छता अभियान चलाया। अपने शहर में ही देखिए। कितना साफ-सुथरा हो गया है। पहले सब तरफ गंदगी, कूड़े के ढेर दिखाई देते थे।
मैं- विकास! मैं आपसे सहमत नहीं हूं। शहर तो आज भी पहले की तरह गंदगी से अटा पड़ा है। बस, कहीं-कहीं सफाई दिख जाती है।
वि.- नहीं सर! आपने फिर ठीक से देखा नहीं है। या आप मोदीजी के विरोधी हैं, इसलिए ऐसा कह रहे हैं।
मैं- चलिए, आपकी बात मान भी लें तो शहर की सफाई में मोदीजी का क्या योगदान है?
वि.- उनका नहीं तो किसका है?
मैं- भाई! शहर की सफाई का जिम्मा तो नगर निगम का है। मेयर का है। वार्ड पार्षद का है। फिर सबसे बढ़कर स्वयं नागरिकों का है। शहर की गंदगी साफ करना प्रधानमंत्री का काम नहीं है।
वि.- तो सर, आप ही बताइए, प्रधानमंत्री का काम क्या है?
मैं- विकास! आज देश में जो हालात हैं,उसमें प्रधानमंत्री को सबसे पहिले नौजवानों पर ध्यान देने की जरूरत है। जिस तरह से बेरोजगारी बढ़ रही है, उसे कैसे रोका जाए, युवाओं को काम कैसे मिले, यह सोचना उनका काम है। प्रधानमंत्री और देश की सरकार को खेती-किसानी पर भी अपना ध्यान लगाना चाहिए। किसान खुशहाल रहेगा तो सबको बरकत होगी।
वि.- खेती-किसानी की बात तो आपने ठीक की, लेकिन मैं नहीं मानता कि देश में बेरोजगारी कोई समस्या है।
मैं- आपको बेरेाजेगारी समस्या मालूम नहीं देती?
वि.- बिल्कुल नहीं सर! आपके छत्तीसगढ़ में देखिए, काम की कहां कमी है। छत्तीसगढ़िया काम करना ही नहीं चाहते।
मैं- आप छत्तीसगढ़ के नहीं हैं? कहीं बाहर से आए हैं?
वि.- नहीं सर, मैं तो पैदाइशी छत्तीसगढ़िया हूं। मेरे कहने का मतलब है कि यहां लोग-बाग काम करने से जी चुराते हैं। मुझको देखिए, नौकरी नहीं मिली तो ओला टैक्सी चलाकर चार पैसे कमा रहा हूं।
मैं- विकास! मैं आपकी तारीफ करता हूं कि आप एक मेहनतकश इंसान हैं और पसीना बहाकर अपना घर-बार चला रहे हैं। लेकिन आप ऐसा कैसे कहते हैं कि हमारे लोग काम से जी चुराते हैं?
वि.- आप ही सोचिए। इतने कारखाने खुल गए हैं। और भी कितने सारे अवसर हैं। लेकिन सब जगह यू.पी., बिहार के लोग आकर मेहनत-मजूरी कर रहे हैं। अगर हमारे लोग काम करते तो ये बाहर से मजदूर क्यों लाते?
मैं- आप जितना देख पा रहे हैं, उसके हिसाब से शायद आपकी बात ठीक है। लेकिन यह पूरी सच्चाई नहीं है।
वि.- तब तो आप बताइए सच्चाई क्या है?
मैं- सच्चाई यह है कि छत्तीसगढ़ के मेहनती लोग डेढ़ सौ साल से देश के कोने-कोने में रोजगार की तलाश में जाते रहे हैं। टाटानगर का इस्पात कारखाना, कलकत्ता की जूट मिलें, असम के चाय-बागान, जम्मू-कश्मीर का नेशनल हाईवे, मेरठ के ईंट भट्टे, सब तरफ छत्तीसगढ़िया मजदूरी करते आए हैं।
वि.- माफ कीजिए सर! यह बात मुझे मालूम नहीं थी। लेकिन जब वे इतने मेहनती हैं तो अपने घर में रहकर काम क्यों नहीं करते?
मैं- विकास! इसके पीछे जबरदस्त षड़यंत्र है। पूंजीपति, कारखानेदार, ठेकेदार, स्थानीय लोगों को नौकरी देना पसंद नहीं करते। बाहर से मजदूर आता है तो वह हाड़-तोड़ मेहनत करता है। वह छुट्टियां नहीं लेता। बारह-चौदह घंटे काम में लगा रहता है। उसे एक तरह से बंधक या गुलाम बना दिया जाता है। स्थानीय व्यक्ति गुलामी बर्दाश्त नहीं करेगा। वह वक्त-जरूरत छुट्टी भी लेगा। जबकि इजारेदार कम मजदूरी अधिक मुनाफे के सिद्धांत पर चलता है। अब जैसे आप ही हैं। आपकी जब मर्जी होगी, गाड़ी बंद कर घर जाकर सो जाएंगे।
वि.- आप जो कह रहे हैं, वह ठीक तो लगता है, फिर भी मेरा कहना है सर! रोजगार की कोई समस्या नहीं है।
मैं- ठीक है। आप मेरी बात मत मानिए। यह बताइए कि आपके बच्चे कितने हैं?
वि.- सर! एक बेटा है, कॉलेज में पढ़ रहा है।
मैं- आपने कभी उससे या उसके दोस्तों से पूछा कि वे पढ़ाई खत्म होने के बाद क्या करेंगे?
वि.- अभी तक तो नहीं पूछा।
मैं- तो अब पूछकर देखिए। यह जरूर पूछिए कि वह आपकी तरह दिन-रात टैक्सी चलाना पसंद करेगा या उसे किसी और नौकरी की तलाश होगी? आप उसके संगी-साथियों से भी पूछिए कि वे अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं या नहीं?
वि.- आपने सलाह दी है तो अवश्य पूछूंगा। बस एक आखिरी सवाल है। आपको जहां जाना था, वहां तक हम आ ही चुके हैं। तो इतना बताइए कि नरेंद्र मोदी नहीं तो प्रधानमंत्री कौन बनेगा?
मैं- भाई! सीधी सी बात है। जिस पार्टी को ज्यादा वोट मिलेंगे, ज्यादा सीटें मिलेंगी, उसी का कोई नेता प्रधानमंत्री बनेगा। हम जनतंत्र में रहते हैं। हमें अपनी याने मतदाता की ताकत को पहिचानना चाहिए। प्रधानमंत्री कोई भी बने, वह सही मायने में जनता की सेवा करे, जुमलेबाजी नहीं। बाकी आपका जो भी निर्णय हो।
#देशबंधु में 21 मार्च 2019 को प्रकाशित
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