दूसरी तरफ ऐसे कुछ सिरफिरे लोग हैं जो देश की सरकार और जनता से संयम बरतने की अपील कर रहे हैं। इनमें भारत के नौसेना प्रमुख रह चुके एडमिरल रामदास जैसे लोग हैं जिन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस स्थिति से कैसे निपटा जाए इस बारे में सलाह देने की हिमाकत की है। एक और सेना नायक लेफ्टिनेंट जनरल एच.एस. पनाग हैं। उन्होंने भी अपने अनुभवों के आधार पर बिन मांगी सलाह दे दी है। अरे भाई, आपने देश की बहुत सेवा कर ली, रिटायर हो चुके हैं, घर में बैठिए, नाती-नातिनों से खेलिए, गोल्फ़कोर्स चले जाइए या फिर अपने क्लब में। सरकार को आपकी सलाह की आवश्यकता नहीं है। एक फेसबुक वीर ने एडमिरल रामदास पर सीधे-सीधे आरोप जड़ दिया है कि वे कम्युनिस्ट हैं। गोया कि कम्युनिस्ट होना कोई जुर्म हो। एक दूसरेबहादुर ने सलाह दी है कि एडमिरल को सेना में भर्ती ही नहीं होना चाहिए था। दुर्भाग्य से उन्होंने यह सलाह देने में कोई साठ साल की देरी कर दी।
अब मुझे समझ नहीं आता कि हमारे ये बहादुर जिन्हें मोदी भक्त की भी उपमा दी जाने लगी है, कोझिकोड में अपने आराध्य व इस देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दिए गए भाषण पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे। आखिरकार ये पीएम पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी ही तो थे जिन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की लानत-मलामत करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी; इस बात पर कि वे पाकिस्तान के साथ नरमी बरत रहे हैं। मोदी जी और उनके साथियों ने ही तो एक के बदले चार या आठ सिर काटकर लाने का दावा किया था। इन्हीं मोदीजी ने अनगिनत बार कहा था कि यूपीए सरकार को पाकिस्तान से निपटना नहीं आता। लेकिन फिर न जाने क्या हुआ कि मोदीजी ने अपने शपथ ग्रहण में नवाज शरीफ को बुला लिया। फिर घूमते-घामते उनसे मिलने लाहौर चले गए। अब वही मोदीजी पाकिस्तान की अवाम को गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी से लड़ाई लडऩे का आह्वान कर रहे हैं।
नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निष्ठावान कार्यकर्ता हैं, यह उनका एक व्यक्तित्व है। वे एक बड़े देश के प्रधानमंत्री हैं, यह उनका दूसरा व्यक्तित्व है। वे संघ के कार्यकर्ता होने के नाते पाकिस्तान से लडऩे की बात करते हैं, उसे नेस्तनाबूद करने की धमकी देते हैं, तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री होने के नाते संयम बरतते हैं। उन्हें अब शायद पता है कि दो देशों के बीच युद्ध बच्चों का खेल नहीं है। अटलबिहारी वाजपेयी ने भी जान लिया था कि एटम बम बना लेने से देश सुरक्षित नहीं हो जाता। किन्तु इन भक्तों का क्या करें? उन्हें तो जो पाठ पढ़ाया गया है वे उसी को दोहराते रहते हैं। दोहराते क्या, बल्कि जब मौका मिले जुगाली करते रहते हैं। कितना अच्छा हो कि सुभाष चन्द्रा और अर्णब गोस्वामी के नेतृत्व में इन तमाम वीर बालकों को सीमा पर भेज दिया जाए ताकि वे अपनी शाब्दिक देशभक्ति को व्यवहार में बदल सकें।
बहरहाल मैं सोचता हूं कि युद्ध वास्तव में एक बढिय़ा अवसर है। ऐसा अवसर जो कई तरह से फायदेमंद हो सकता है। अब यही देखिए कि चैनलों में अगर युद्ध को लेकर वाक्युद्ध न होते तो मेजर जनरल जीडी बख्शी जैसे लोग कहां होते? उन्हें कौन पूछता? क्या आज से दो साल पहले देश में उन्हें कोई जानता था? ऐसे ही न जाने कितने कर्नल और बिग्रेडियर और जनरल टीवी के परदे पर गला फाड़ते रहते हैं। इनके साथ-साथ गैर-फौजी रक्षा विशेषज्ञों की भी एक टीम तैयार हो गई है। उधर इलाहाबाद वाले राजू श्रीवास्तव को देखिए। हम तो उन्हें चुटकुलेबाज समझते थे, लेकिन अब पता चला कि वे भी भारी देशभक्त हैं। वीररस के कवियों की तो लंबी कतार लग गयी है। इस तरह न जाने कितने लोगों का भला हो रहा है। अभी तो सिर्फ युद्ध के बारे में बातें ही बातें हैं। इसी में न जाने कितने ही तरह के लोग फायदा उठा रहे हैंं।
जब प्रधानमंत्री केरल में भाजपा के मंच से पाकिस्तान के लोगों को गरीबी से लडऩे की नसीहत दे रहे थे तब हमारे ध्यान में आ रहा था कि दो दिन पहले ही तो भारत सरकार ने फ्रांस से युद्धक विमान खरीदने के लिए कितने अरब डालर का सौदा पक्का कर लिया है। हम विदेशों से हथियार तो खरीद ही रहे हैं, देश के भीतर भी कारपोरेट घराने सामरिक सामग्री निर्माण करने के लिए आगे आ रहे हैं। इन देशी-विदेशी उद्योगों से सैन्य सामग्री की खरीदारी में किसको कितना लाभ होगा, क्या इस बारे में कुछ कहने की आवश्यकता है? ऐसा नहीं कि लड़ाई की बात करने से, लड़ाई का माहौल बनाने से, जनता में उत्तेजना फैलाने से और सचमुच युद्ध होने से कारपोरेट घरानों के राजनेताओं, अफसरों, ठेकेदारों, बिचौलियों और प्रवक्ताओं को ही लाभ मिलता है।
युद्ध कोई मजाक की बात नहीं है। युद्ध एक लंबा सौदा है, बहुतों के लिए मुनाफे का सौदा।इराक की आत्मनिर्वासित कवयित्री दुन्या मिखाइल ने लगभग पन्द्रह बरस पहले युद्ध करता है अनथक मेहनत शीर्षक से इस बारे में जो कविता लिखी थी उसे पढि़ए और तारीफ कीजिए कि सचमुच युद्ध कितनी बढिय़ा बात है। (अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद मेरा है)
देखो सचमुच कितना /भव्य है युद्ध! कितना तत्पर और/ कितना कुशल! अलस्सुबह वह/ साइरनों को जगाता है और/एंबुलेंस भेज देता है/ दूर-दराज तक / हवा में उछाल देता है/ शवों को और/ घायलों के लिए/ बिछा देता है स्ट्रेचर/
वह माताओं की आंखों से /बुलाता है बरसात को/ और धरती में गहरे तक धंस जाता है/ कितना कुछ तितर-बितर कर/ खंडहरों में/ कुछ एकदम मुर्दा और चमकदार/
कुछ मुरझाए हुए लेकिन/अब भी धडक़ते हुए/ वह बच्चों के मस्तिष्क में / उपजाता है हजारों सवाल/ और आकाश में/ राकेट व मिसाइलों की आतिशबाजी कर/ देवताओं को दिल बहलाता है/ खेतों में वह बोता है/ लैंडमाइन और फिर उनसे/ लेता है जख्मों व नासूरों की फसल/ वह परिवारों को बेघर-विस्थापित/ हो जाने के लिए करता है तैयार/ पंडों-पुरोहितों के साथ होता है खड़ा/जब वे शैतान पर लानत/ फेंक रहे होते हों/ (बेचारा शैतान, उसे हर घड़ी देना होती है अग्नि परीक्षा)/
युद्ध काम करता है निरन्तर/क्या दिन और क्या रात/ वह तानाशाहों को लंबे भाषण देने के लिए/प्रेरित करता है/ सेनापतियों को देता है मैडल/ और कवियों को विषय/ वह कृत्रिम अंग बनाने के कारखानों को/ करता है कितनी मदद/ मक्खियों तथा कीड़ों के लिए/ जुटाता है भोजन/ इतिहास की पुस्तकों में/ जोड़ता है पन्ने व अध्याय/ मरने और मारने वालों के बीच दिखाता है बराबरी/
प्रेमियों को सिखाता है पत्र लिखना/ व जवां औरतों को इंतजार/अखबारों को भर देता है/ लेखों व फोटो से/ अनाथों के लिए बनाता है नए घर/
कफ़न बनाने वालों की कर देता है चांदी/ कब्र खोदने वालों को देता है शाबासी/ और नेता के चेहरे पर/ चिपकाता है मुस्कान/ युद्ध अनथक मेहनत करता है बेजोड़/ फिर भी क्या बात है कि कोई उसकी तारीफ में/ एक शब्द भी नहीं कहता।
देशबंधु में 29 सितंबर 2016 को प्रकाशित