प्रधानमंत्री या ब्रांड एम्बेसेडर भारतीय जनता पार्टी ने कहने को तो हरियाणा के वरिष्ठ मंत्री और मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे नेता अनिल विज के विवादास्पद बयान से किनारा कर लिया है, लेकिन उसी के साथ-साथ पार्टी ने जो आधिकारिक वक्तव्य जारी किया है उससे भाजपा के सही इरादे प्रकट हो जाते हैं। इस अधिकृत बयान में साफ तौर पर कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खादी ग्रामोद्योग कमीशन ने अपने 2017 के कैलेण्डर में स्थान देकर कोई गलती नहीं की है। श्री मोदी की लोकप्रियता का लाभ आयोग को मिलेगा और इससे देश-विदेश में खादी को बढ़ावा मिलेगा। यह बयान मोदी सरकार की कार्यप्रणाली के सर्वथा अनुकूल है। भारतीय जनता पार्टी ने उनको अपना ब्रांड एम्बेसेडर बनाकर ही चुनाव जीता था और जिस दिन से श्री मोदी प्रधानमंत्री बने हैं उस दिन से, वाणिज्यिक मुहावरे में, अपनी ब्राण्ड इक्विटी में इजाफा करने का कोई मौका उन्होंने नहीं छोड़ा है। यह अनायास नहीं है कि फिलहाल केन्द्र में जो सरकार है उसे कोई एनडीए सरकार नहीं कहता, भाजपा सरकार भी नहीं कहता बल्कि उसे मोदी सरकार के नाम से ही जाना जाता है।
यूं तो व्यक्ति पूजा हर समाज में किसी न किसी रूप में विद्यमान रहती है, किन्तु नरेन्द्र मोदी ने इस मामले में सबको पीछे छोड़ दिया है। उनकी जो कार्यशैली है उसे देखकर यह शंका भी उभरती है कि क्या श्री मोदी नेतृत्व क्षमता के समयसिद्ध मानदंडों पर खरे उतरते हैं! वे अपने आपको एक महानायक के रूप में देखते हैं और ऐसा लगता है कि अपनी वृहदाकार छवि निर्मित करने के लिए वे लंबे समय तक प्रतीक्षा नहीं करना चाहते। वे जिस तरह से एक के बाद एक ताबड़तोड़ घोषणाएं कर रहे हैं, योजनाएं पेश कर रहे हैं, अपने पूर्ववर्तियों के छवि-ध्वंस में जुटे हुए हैं वे सब इसी ओर इंगित करते हैं। एक नायक अपने तईं वीर, पराक्रमी, बुद्धिमान, साहसी, उद्यमी सब कुछ हो सकता है, किन्तु वह सच्चे अर्थों में नेता तभी माना जाएगा जब उसमें अपने समाज को साथ लेकर चलने की क्षमता हो। वह आगे रहता है, लेकिन साथी बहुत पीछे न छूट जाए, इसकी भी फिक्र करता है। आवश्यकता पडऩे पर उन्हें सहारा भी देता है। धीरज रखता है कि सब मिलकर आगे बढ़ेंगे। श्री मोदी इन बातों की परवाह करते दिखाई नहीं देते।
उन्होंने प्रधानमंत्री बनते साथ अपने शपथ ग्रहण में पड़ोसी देशों के राष्ट्रप्रमुखों को आमंत्रित किया। पहला संदेश गया कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में हम पड़ोसियों के साथ बेहतर संबंध बनाना चाहते हैं, लेकिन देखते ही देखते तस्वीर बदल गई। फिर वेे घूमते-घामते नवाज शरीफ से मिलने लाहौर पहुंच गए, उसके तुरंत बाद पठानकोट पर आतंकी हमला हो गया। कुछ समय पहले सर्जिकल स्ट्राइक कर सबक सिखाने की बात कही गई, उसका भी कोई वांछित प्रभाव देखने नहीं मिला। राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत आए। प्रधानमंत्री ने शिष्टाचार का उल्लंघन करते हुए उन्हें प्रथम नाम से बार-बार बराक कहकर संबोधित किया, शायद जनता को अपने नायकत्व का एक और प्रमाण देने के लिए, किन्तु जाते-जाते बराक ओबामा उन्हें सार्वजनिक मंच से सहिष्णुता का सबक दे गए।
प्रधानमंत्री ने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा स्थापित योजना आयोग को भंग कर नीति आयोग का गठन कर दिया। लेकिन उससे हुआ क्या? योजना आयोग एक स्वायत्त संस्था थी, जिसकी जिम्मेदारियां सुनिश्चित थीं, परन्तु कोई नहीं जानता कि नीति आयोग क्या कर रहा है। वह एक स्वायत्त संस्था न होकर सरकार द्वारा नियंत्रित एक इकाई बनकर रह गया है। उसी तरह मोदी सरकार में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्वायत्तता में हस्तक्षेप करने के प्रयत्न भी बार-बार हुए और अंतत: इसमें सफलता मिल गई। प्रमाण विमुद्रीकरण के रूप में सामने है। गवर्नर उर्जित पटेल मुंह छुपाए घूम रहे हैं और रिजर्व बैंक कर्मचारी यूनियन उनसे अपने पद की गरिमा बचाने की अपील कर रही है। आए दिन खबरें सुनने मिलती हैं कि प्रधानमंत्री ने इसकी क्लास ली, उसकी क्लास ली, ऐसे फटकारा, वैसे फटकारा, मंत्री तक उनके सामने जुबान नहीं खोलते, अधिकारी हर समय दहशत में रहते हैं और यह कि प्रधानमंत्री का विश्वस्त अमला मंत्रियों और अधिकारियों पर चौबीस घंटे नजर रख रहा है इत्यादि। यह कैसा नेतृत्व है जिसमें निकट सहयोगियों से भी संवाद न हो? क्या हमारे प्रधानमंत्री अमित शाह और अजित डोभाल के अलावा अन्य किसी पर विश्वास नहीं करते?
प्रधानमंत्री ने पिछले ढाई-पौने तीन साल में अनेक ऐसी योजनाओं का श्रीगणेश किया जिन्हें सरकार का फ्लैगशिप प्रोग्राम याने सर्वप्रमुख कार्यक्रम कहा जाता है। यथा बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया आदि-आदि। बताया तो यह जाता है कि प्रधानमंत्री इन सारे कार्यक्रमों की खुद निगरानी कर रहे हैं। किन्तु यह दावा वास्तविकता से कोसों दूर है। जब इनके आंकड़े मांगे जाते हैं तो सरकार की तरफ से या तो गोलमोल जवाब दिया जाता है या फिर चुप्पी साध ली जाती है। स्वच्छ भारत के लिए स्वयं प्रधानमंत्री झाड़ू लेकर सडक़ पर उतरे थे। नीता अंबानी का झाड़ू लगाते फोटो भी हमने देखा था, लेकिन किसे नहीं पता कि कार्यक्रम को बिल्कुल भी सफलता नहीं मिली है। जिन राज्यों में भाजपा का शासन है वहां भी ढाक के वही तीन पात की कहावत चरितार्थ हो रही है।
प्रधानमंत्री और उनके समर्थकों द्वारा बार-बार सत्तर साल की दुहाई दी जाती है। यह विडंबना है कि आपने अभी तक खुद तो कुछ उल्लेखनीय किया नहीं है, लेकिन जो पहले हो चुका है उसे एक सिरे से नकार कर जनता के मन में अविश्वास पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। सत्तर साल में क्या हुआ, उसे देखना कठिन नहीं है। हाथ कंगन को आरसी क्या? यही देख लीजिए कि आईआईटी, आईआईएम और एम्स जैसे उच्च शिक्षा संस्थान किसने स्थापित किए। हरित क्रांति का आगाज कब हुआ था, भारत अनाज में बड़ी हद तक आत्मनिर्भर कब बना। भारत में श्वेत क्रांति कब हुई और हमने विश्व के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादन देश होने का गौरव कब हासिल किया। भिलाई से लेकर सेलम तक के इस्पात कारखाने किसने स्थापित किए। बाम्बे हाई में तेल उत्पादन कैसे प्रारंभ हुआ। 1947 में देश में औसत आयु सत्ताइस वर्ष थी, वह बढक़र लगभग सत्तर साल कैसे हो गई। इतना सब हुआ, फिर भी कहने से बाज नहीं आते कि कुछ नहीं हुआ। अगर आप में कृतज्ञता का भाव नहीं है तो न सही, झूठ फैलाकर पुरखों की स्मृति के साथ अन्याय तो मत कीजिए।
प्रधानमंत्री और उन्हें ज्ञान देने का दावा करने वाले योग व्यापारी आदि देश से भ्रष्टाचार मिटाने की बहुत बातें करते हैं। स्विस बैंकों में जमा अकूत धन वापिस लाने के बड़े-बड़े दावे किए गए थे, उनका क्या हुआ। नोटबंदी करके कालाधन समाप्त करने की बात की गई थी। दो महीने में उसमें बार-बार नियम बदले गए और नए-नए वायदे किए गए। आम जनता परेशान है, किसान, छोटे दुकानदार, निजी प्रतिष्ठानों के कर्मचारी असंगठित क्षेत्र के मजदूर, औसत गृहणियां सबको कठिनाइयां झेलना पड़ रही हैं, लेकिन मोदी सरकार को इसका कोई मलाल नहीं है। एक झटके में लगभग पूरा देश बेईमान और भ्रष्ट सिद्ध कर दिया गया है। अगर पवित्र और सच्चरित्र कोई है तो मोदी भक्त और इनकम टैक्स अधिकारी जिन्हें इंस्पेक्टर राज चलाने का नया लाइसेंस मिल गया है।
एक बड़ी तस्वीर के ये कुछ चित्र हैं। एक व्यक्ति जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वर्षों तक निष्ठावान कार्यकर्ता रहा हो और जिसने एक प्रमुख राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर ग्यारह वर्षों तक शासन चलाया हो उससे उम्मीद की जाती है कि जनता की नब्ज पर उसका हाथ है, और उसे पता है कि देश में सुख-शांति और समृद्धि का माहौल तैयार करने के लिए क्या किया जाना आवश्यक है। यदि एक नया रास्ता बनाना है तो उसके लिए समय और साधना की आवश्यकता तो होती ही है, जनता को भी साथ लेकर चलना होता है। नरेन्द्र मोदी को यह समझना चाहिए कि वे प्रधानमंत्री हैं, ईश्वर के अवतार नहीं। हमारे देश में अवतारी पुरुषों की ही मूर्तियां प्रतिष्ठित होती आई हैं। राष्ट्रपिता की मूर्ति चौक-चौराहों पर भले ही हो, उनके मंदिर नहीं बने हैं। प्रधानमंत्री हर जगह, हर समय अपनी ही छवि स्थापित करने में लगे रहेंगे, निजी कंपनियों के विज्ञापन से लेकर, सार्वजनिक उपक्रम के कैलेण्डर तक अगर उनकी ही तस्वीर दिखेगी तो यह ब्रांडिंग भी हो सकती है और अपनी प्रतिमा पूजन की इच्छा भी। दोनों स्थितियों में यह बात जनता को बहुत देर तक पसंद नहीं आएगी। जो आज आपको चाहते हैं कल वही आपसे दूर हो जाएंगे। अनिल विज और उनके जैसे चाटुकारों, सत्तासीन नेताओं और तोता-रटंत प्रवक्ताओं की बात अलग है।
No comments:
Post a Comment