Wednesday 3 January 2018

यात्रा वृतांत: मणिपुर : संस्कृति के कुछ रंग

                                         
पूर्वोत्तर भारत के इतिहास, भूगोल, संस्कृति इत्यादि के साथ शेष भारत का परिचय बहुत प्रगाढ़ नहीं है। दरअसल, अपार विविधता भरे इस देश में एक-दूसरे के बारे में जान लेना कठिन व्यायाम है। हम अमेरिका में तो हैं नहीं, जहां समूचे देश में लगभग एक जैसा खानपान, एक जैसे वस्त्राभूषण, एक जैसी सड़कें और एक जैसी इमारतें हों। अमेरिका में अटलांटिक तट से लेकर प्रशांत महासागर के किनारे तक चले जाइए; प्रकृतिदत्त विविधताओं को छोड़ दें तो मनुष्य ने जो निर्मित किया है उसमें बहुत फर्क दिखाई नहीं देता। खैर! यह तुलना न जाने कैसे दिमाग में आ गई, मैं बात तो अपने देश की करना चाह रहा था। मणिपुर के बारे में एक मिथक से हम परिचित हैं कि महाभारतकाल में अर्जुन ने वहां की राजकुमारी चित्रांगदा से गंधर्व विवाह रचाया था। वर्तमान समय की बात करने पर जो पहली और संभवत: एकमात्र छवि जनसामान्य में उभरती है वह मणिपुरी नृत्य की है। कोई कला-रसिक हो या न हो, मणिपुरी भारत की नृत्य परंपरा में एक प्रमुख शैली है यह लोग सामान्यत: जानते हैं।
मणिपुर का भारत की बहुलतावादी संस्कृति के विकास में जो दूसरा महत्वपूर्ण योगदान है वह संभवत: रंगमंच के क्षेत्र में है। रतन थियम देश के जाने-माने रंगकर्मी हैं। वे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय याने एन.एस.डी. के निदेशक भी रह चुके हैं। देश की पूर्वी सीमा पर बसे इस प्रदेश का मैतेई समाज कृष्ण भक्तिधारा में डूबा हुआ है। यहां के एक राजा ने रासलीला प्रारंभ करवाई जिसे वे बृजभूमि से लेकर आए इसका संकेत हम पिछले लेख में दे चुके हैं। कोलकाता से हवाई यात्रा के दौरान ही यह अनुमान लग गया था कि मणिपुर में चैतन्य महाप्रभु द्वारा स्थापित गौड़ीय सम्प्रदाय का गहरा प्रभाव है। मैंने अपने कुछ सहयात्रियों को देखकर यह अनुमान लगाया था। मणिपुर के नृत्य और अन्य ललित कलाओं में भी यही प्रभाव परिलक्षित होता है। यहां तक कि पाककला में भी इसे देखा जा सकता है।
हमारे मेजबान साथी डॉ. नारा सिंह जी ने अपने प्रदेश की सांस्कृतिक परंपरा और इतिहास दोनों से हमें परिचित कराने का प्रबंध कर रखा था। एक शाम हमने लगभग डेढ़ घंटे लंबा कार्यक्रम देखा जिसमें नृत्य और गीत के अलावा मणिपुर के मार्शल आर्ट्स का प्रदर्शन भी शामिल था। औसतन पन्द्रह मिनट की एक-एक प्रस्तुति थी जिसमें कलाकारों की चपलता हाव-भाव, गायन, वादन सब कुछ देखते ही बनता था। जो प्रदर्शन तलवारबाजी के थे उनमें कलाकारों की चपलता और शरीर की लोच, अधर में फिरकी खाना आदि देखकर हम लोग ठगे से रह गए थे। तीसरी रात एक और सांस्कृतिक प्रस्तुति देखने का अवसर मिला। डॉ. नारा सिंह ने स्वयं पर्यावरण विनाश पर मणिपुरी में कविता लिखी है जिसका शीर्षक हिन्दी में 'प्रकृति का क्रंदन' होगा। इस पर आधारित एक घंटे से अधिक अवधि के बैले अथवा नृत्य नाटिका को देखना एक अद्भुत अनुभव था। 
यह कविता डॉ. नारा सिंह ने कई साल पहले लिखी थी। इसे उन्होंने विपक्ष के नेता के रूप में मणिपुर विधानसभा में सुनाया था। यहीं से उनका कवि मन भी जागृत हुआ। कविता पर आधारित बैले में लगभग पचास अभिनेता रहे होंगे जो मनुष्य द्वारा प्रकृति पर किए जा रहे अत्याचार के विभिन्न रूपों को अपनी कला से प्रदर्शित कर रहे थे। इस बैले का दृश्यविधान तो बहुत सुंदर था ही, कलाकार भी अपनी प्रतिभा की चमक बिखेर रहे थे। कार्यक्रम समाप्त हुआ। सारे लोग कलाकारों को बधाई देने उमड़ पड़े। बैले की निदेशिका लतादेवी थाउनाउजाम (यह सरनेम उनके गांव का नाम है) को बधाई देते हुए मैंने सहज पूछ लिया कि आपके हिन्दी उच्चारण इतने साफ कैसे हैं। जवाब मिला कि उन्होंने भोपाल में नाट्य कला का अध्ययन किया है और वे अपने समय की मशहूर रंगकर्मी गुल वर्द्धन व प्रभात गांगुली की छात्रा रहीं हैं। मैंने जब बताया कि मेरा भी मध्यप्रदेश से रिश्ता है तो वे एकाएक भावुक हो गईं। बोलीं- भोपाल तो मेरा मायका है, आप मेरे मायके से आए हैं।
मैं सात दिसंबर की सुबह मणिपुर पहुंचा था। उस दिन और अगली शाम तक भी मौसम खुला हुआ था। गो कि ठंड बहुत थी। अच्छे मौसम के कारण इम्फाल शहर में घूमने का अवसर मिल गया। इससे स्थानीय जीवन की कुछ और बातें समझ में आईं। मणिपुर में प्राकृतिक सुंदरता बहुत है। इम्फाल घाटी को छोड़कर अधिकतर प्रदेश पहाड़ों से घिरा हुआ है। नगा जनजाति की अधिकतर आबादी पहाड़ों में ही बसी है। मणिपुर को शेष भारत से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों पर कभी भी नाकाबंदी कर देते हैं और तब स्थानीय जनता को बहुत सारी तकलीफों का सामना करना पड़ता है। याने यह प्राकृतिक सुंदरता कई बार परेशानी का सबब बन जाती है। दूसरी ओर मणिपुर कुछ मामलों में पूरी तरह से अन्य प्रदेशों की बराबरी करता है। जैसे वाहनों की बढ़ती संख्या, लगातार बढ़ता प्रदूषण, सीमेंट, कांक्रीट से बनते नए घर और ऊंची इमारतें, ट्रैफिक नियमों का पालन न करना, दलबदल, जोड़-तोड़ से बनी भाजपा सरकार के बावजूद स्वच्छता का अभाव इत्यादि।
इम्फाल, विष्णुपुर, मोइरांग जैसे नगरों को देखकर लगता है कि आप अपने घर में ही हैं। कम से कम सड़कों और बाजारों का नजारा तो वही है। मुझे अल्प प्रवास में यह भी अनुमान हुआ कि प्रदेश में बेरोजगारी काफी है और गरीबी भी कम नहीं है। एक जगह मैंने छोटा सा बाजार लगते देखा कुछ लोग हाथ ठेलों पर लादकर गठरियां लाए, उनको खोला और पुराने याने उतारे हुए ऊनी कपड़ों और जूतों की दुकानें सजा दीं। देखते ही देखते वहां ग्राहक इकट्ठा होने लगे। ऐसा दृश्य किसी भी भारतीय  नगर में आम है। मणिपुर के सब्जी बाजार में और इमा मार्केट में भी इस श्रेणी भेद को देख पाना बहुत कठिन तो नहीं था।
बहरहाल मणिपुर के बाजारों में दो-तीन नई बातें भी देखने मिलीं। इमा मार्केट में कमल के फूल, वे भी नीले और सुर्ख लाल बड़ी मात्रा में बिक्री होते देखे। इनका उपयोग ठाकुर की पूजा में होता होगा। गुवाहाटी की तरह यहां भी गुवा याने कच्ची सुपारी खूब बिकती है और खूब खाई भी जाती है। कच्ची सुपारी गाल के नीचे दबा ली जाए तो उससे एक मद्धिम किस्म का सुरूर चढ़ता है, यह तो मैंने भी अनुभव किया है। पुरुष ही नहीं, स्त्रियां भी इसका सेवन करती हैं। मणिपुर में खसखस बहुतायत में मिलती है। हमारे बंगाली दोस्त इसे देखकर बहुत प्रसन्न हुए क्योंकि बांग्ला भोजन में पोस्त याने खसखस का उपयोग काफी प्रचलित है। मैंने यहां काला चावल भी देखा और उसका दो रूपों में सेवन करने का अवसर भी मिला। काले चावल से बनी खीर बहुत स्वादिष्ट थी। अलग से भात की तरह खाने पर भी उसका स्वाद अच्छा था। यह भी एक रोचक संयोग था कि पश्चिमी सीमा पर फ़ाज़िल्का में जहां मैंने कुछ दिन पहले कीनू का स्वाद चखा था वहीं पूर्वी सीमा पर मणिपुर में स्थानीय संतरे का स्वाद लेने का अवसर मिला। प्रदेश में संतरे की खेती बढ़ाने के उपाय चल रहे हैं।
इन सारे स्वादों के साथ एक कड़वा स्वाद भी मिला। मणिपुर के अंग्रेजी अखबार पढ़कर यह समझ में आया कि देश के अन्य हिस्सों में जिस तरह प्रेस की स्वतंत्रता नाकाबिले बर्दाश्त हो गई है, कुछ वैसी ही परिस्थिति मणिपुर में भी बनी हुई है। मेेरे प्रवास के दौरान एक ऐसा प्रसंग आया जब सत्तारूढ़ भाजपा के प्रवक्ता ने टीवी पर प्रसारित किसी कार्यक्रम को लेकर पत्रकारों पर अवांछित टिप्पणी की जिसका विरोध स्थानीय पत्रकारों ने किया। उन्होंने बैठक आयोजित कर भाजपा प्रवक्ता के बयान की कड़ी निंदा भी की। स्वाधीनता संग्राम और मणिपुर के बारे में चर्चा तीसरी और आखिरी किश्त में होगी। 
देशबंधु में 04 जनवरी 2018 को प्रकाशित 

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