एक नई करवट। एक नई राह। एक बड़ा बदलाव। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के आज घोषित नतीजे यही संदेश देते हैं। देश की जनता का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर से विश्वास धीरे-धीरे उठता जा रहा है और भारतीय जनता पार्टी से कहीं कम, कहीं अधिक उसका मोहभंग होने लगा है। जनता ने यह भी साफ-साफ बता दिया है कि वह जुमलेबाजी से ऊब चुकी है, घृणा की राजनीति अब उसकी बर्दाश्त से बाहर हो गई है और सड़क छाप राजनीति को उसने नकार दिया है। आज तक जो कांग्रेस को डेढ़ राज्य की पार्टी कहकर तिरस्कार किया करते थे आज देश की तीन प्रमुख राज्यों में कांग्रेस की शानदार वापसी के बाद उन्हें अपनी ही अभद्र टिप्पणियों पर देश की जनता से माफी मांगना चाहिए और नहीं तो कम से कम आत्मावलोकन करना ही चाहिए कि वे देश को कहां ले जाना चाहते थे। विगत पांच वर्षों में राहुल गांधी और सोनिया गांधी का जिस भाषा और भाव-भंगिमा से उपहास, तिरस्कार और अपमान किया गया उस पर भी उन्हें अपने आप पर शर्मिन्दा होना चाहिए।
इन चुनावों में सबसे शानदार नतीजे छत्तीसगढ़ के रहे। पन्द्रह साल के वनवास के बाद कांग्रेस दो तिहाई बहुमत के साथ लौटकर सत्ता में आई है। कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं ने अपने आपसी मतभेदों को दरकिनार कर अभूतपूर्व एकजुटता का परिचय दिया, अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में पूरी मेहनत के साथ काम किया और हर कदम पर आवश्यक सतर्कता बरती। अजीत जोगी की कांग्रेस से विदाई एक साहसिक, लेकिन आवश्यक कदम था जिसका सुपरिणाम कांग्रेस को मिला है। कांग्रेस की रणनीति तय करने में स्वयं राहुल गांधी और प्रदेश के प्रभारी महासचिव पी.एल. पुनिया ने जो प्रयत्न किए और जिस सूझबूझ का परिचय दिया वह भी अनिवार्य रूप से रेखांकित करने योग्य है। कांग्रेस ने जो घोषणापत्र जारी किया उसने प्रदेश के किसानों के मन में आशा का संचार किया है। यह कांग्रेस के पक्ष में एक बड़ा सकारात्मक बिन्दु था। नई सरकार को बिना समय गंवाए घोषणापत्र पर अमल करना होगा।
दूसरी ओर भाजपा के मुखिया डॉ. रमन सिंह इस बार जनता के मन को नहीं पढ़ पाए। वे अपने इर्द-गिर्द के कुछ अफसरों पर सीमा से अधिक विश्वास कर बैठे। सत्तारूढ़ भाजपा और उसके नेताओं का अहंकार, सीमाहीन भ्रष्टाचार और नेताओं की एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति ने भी भाजपा का नुकसान करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। मुझे आश्चर्य और अफसोस है कि डॉ. रमन सिंह जैसे जमीन से जुड़े हुए व्यक्ति ने कैसे जमीनी सच्चाइयों से मुंह मोड़ लिया। भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने करेला पर नीम चढ़ा की कहावत सिद्ध की। चुनाव लड़ा जा रहा था रमन सिंह के नेतृत्व में, लेकिन टिकट वितरण में उनकी नहीं चली और योगी आदित्यनाथ जैसे कथित स्टार प्रचारक की दो दर्जन सभाएं भी किसी काम नहीं आई। वैसे भी प्रदेश की जनता पिछले पन्द्रह साल में भाजपा के निरंतर बढ़ते हुए कुशासन से आजिज आ चुकी थी। इस तरह कहें तो एक ओर कांग्रेस और उसकी नेताओं की सकारात्मक सोच और दूसरी ओर भाजपा की नकारात्मक छवि और तीसरी ओर जनता की परिवर्तन की आकांक्षा ने देखते ही देखते मंजर बदल दिया।
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक मध्यप्रदेश की स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं हुई है, लेकिन वहां भी कांग्रेस एक नए उत्साह और एक नए संकल्प के साथ चुनाव मैदान में उतरी जिसका अनुकूल परिणाम देखने मिल रहा है। यही स्थिति राजस्थान के बारे में कही जा सकती है। तीन हिन्दी प्रदेशों में कांग्रेस की विजय स्वागत योग्य है क्योंकि इससे हमें उम्मीद बंधती है कि आज के बाद राजनीति में एक तत्काल आवश्यक संतुलन स्थापित हो सकेगा। तेलंगाना और मिजोरम के परिणाम कांग्रेस के लिए निराशाजनक रहे। तेलंगाना के मतदाताओं को कांग्रेस का टीडीपी के साथ गठजोड़ करना पसंद नहीं आया। यद्यपि लोकसभा के समय शायद यह गठबंधन उपयोगी हो सके। मिजोरम में एनएमएफ की जीत आश्चर्यजनक नहीं है। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस की पराजय हुई है, लेकिन यहां भाजपा के मंसूबे धरे के धरे रह गए।
इस त्वरित टिप्पणी में चुनाव परिणामों का विस्तृत विश्लेषण संभव नहीं है। फिलहाल हम कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व व तीनों प्रदेशों के नेताओं को बधाई देना चाहेंगे। भाजपा के विजयी उम्मीदवारों को भी हम बधाई देते हैं, इस उम्मीद के साथ कि वे उत्तरदायी विपक्ष की भूमिका निभाएंगे। यह बधाई और यह उम्मीद अजीत जोगी, बसपा, सपा, गोगंपा व अन्य सभी दलों और सभी जीते हुए प्रत्याशियों के प्रति भी है।
#देशबंधु में 12 दिसम्बर 2018 को प्रकाशित विशेष सम्पादकीय
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