Thursday, 7 February 2019

सत्ता कुसुम, रस-लोभी भ्रमर व अन्य बातें


छत्तीसगढ़ में इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही है। इसके बरक्स प्रदेश के राजनैतिक-सामाजिक वातावरण में एक आश्वस्तिकारी गर्माहट का अनुभव हो रहा है। आम जनता को लग रहा है कि सरकार सचमुच उसके पास आ गई है। मुख्यमंत्री और उनके सहयोगी इन दिनों सोलह-सोलह घंटे काम कर रहे हैं। सरकारी कामकाज भी चल रहा है और इसके बीच दूर-दराज के गांवों तक पहुंच मंत्रीगण सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सेदारी दर्ज कर रहे हैं। दिल्ली और अनेक स्थानों से फोन करके लोग मुझसे पूछते हैं कि सरकार कैसी चल रही है। मेरा एक ही उत्तर होता है कि कुल मिलाकर सरकार की दिशा और गति सही है। मैं रायपुर में बैठकर अनुमान लगाता हूं कि संभवत: मध्यप्रदेश में भी ऐसा ही खुला-खुला माहौल होगा। जिस दिन रायपुर के एक कार्यक्रम में भूपेश बघेल लट्टू घुमा रहे थे, उसी दिन ग्वालियर में ज्योतिरादित्य सिंधिया किसी मेले में समोसे में आलू भरने की दक्षता प्रदर्शित कर रहे थे। यह सब अच्छा लगता है, लेकिन मेरा मन एक चेतावनी दर्ज करना चाहता है।
सत्ता कुसुम पर रस-लोभी भौंरे मंडरा ही नहीं रहे हैं, आकर बैठ भी गए हैं। इनमें पत्रकार, मीडिया मालिक, लेखक, अध्यापक, अधिकारी, कर्मचारी, संन्यासी सभी वर्गों के लोग शामिल हैं। अधिकतर वे ही हैं जिन्होंने पिछले पंद्रह साल में रमन सरकार का रस चूसने में कोई कसर बाकी नहीं रखी और बिना समय गंवाए अपना उड़ान- पथ बदल लिया। खबरे है कि रायपुर शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष गिरीश दुबे ने ऐसे कुछ कर्मचारियों की सूची मुख्यमंत्री को सौंपी है। लेकिन जो ऊंचा दांव खेल रहे हैं, उनकी सूची कौन बनाएगा? यह तो हर मंत्री के निजी विवेक पर निर्भर करेगा कि वे स्वार्थ के एजेंटों से बचकर रहें।
अब सरकार के सामने यह चुनौती भी है कि जन आकांक्षाओं के अनुरूप नीतियों व कार्यक्रम कैसे बनाए जाएं व उनका निष्ठापूर्वक क्रियान्वयन कैसे हो। मैंने चुनावों के दौरान ''अपनी सरकार से अपेक्षाएं'' शीर्षक से तीन लेख लिखे थे। उसी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कुछेक बिंदु मुख्यमंत्री व संबंधित विभागीय मंत्रियों के ध्यान में लाना चाहता हूं।
टी.एस. सिंहदेव के समक्ष बड़ी चुनौती है कि प्रदेश में चिकित्सा सुविधाओं को कैसे जनसुलभ बनाया जाए। उन्होंने आयुष्मान योजना के स्थान पर राज्य की अपनी योजना प्रारंभ करने की बात कही है। इसका मैं स्वागत करता हूं। देशव्यापी जनस्वास्थ्य अभियान से भविष्य के बारे में परामर्श करना उचित होगा। यह अच्छी खबर है वे उनके संपर्क में है। क्यूबा की स्वास्थ्य सुविधाएं विश्व में सबसे उत्तम है। इंग्लैंड की नेशनल हैल्थ सर्विस का उदाहरण भी सामने है। क्या इनसे कुछ सीखा जा सकता है? प्रदेश में भी सेवाभावी डॉक्टरों की कमी नहीं है। उनके अनुभव काम में आ सकते है। आशय यह कि स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में नवाचार की आवश्यकता है।
सिंहदेवजी पर पंचायती राज की भी महती जिम्मेदारी है। शकुंतला साहू, द्वारिकाधीश यादव, ममता चंद्राकर, कुंवर सिंह निषाद आदि की विधानसभा में उपस्थिति प्रदेश में जनतंत्र की जड़ें मजबूत होने का संकेत देती हैं। लेकिन आवश्यक है कि पंचायती राज प्रतिनिधियों को सही ढंग से प्रशिक्षण दिया जाए। अभी तक इस दिशा में खानापूरी होते आई है। ग्राम सभाएं कागज पर हो जाती हैं। विभागीय अधिकारियों के सामने चुने हुए प्रतिनिधियों की कोई हैसियत नहीं रहती और जमीनी स्तर पर प्रणाली को पुष्ट करने में अब तक किसी की रुचि नहीं देखी गई है।
सांस्कृतिक मोर्चे पर इस सरकार ने एक पुण्य का काम किया कि राजिम पुन्नी मेला को उसकी पुरानी पहचान वापिस मिल गई और कुंभ के नाम पर हो रहा आडंबर खत्म हो गया। लेकिन ताम्रध्वज साहू से हमें अभी बहुत सी अन्य अपेक्षाएं हैं। मेरा पहला प्रस्ताव है कि प्रदेश में पृथक से पुरातत्व संचालनालय तुरंत स्थापित किया जाए। उसे संस्कृति संचालनालय से अलग करना आवश्यक है। हमारा राज्य पुरातत्व के मामले में बहुत संपन्न है, किंतु इस अनमोल खजाने का ठीक से संरक्षण नहीं हो रहा है। ए.एस.आई. के पुराविद् शिवाकांत बाजपेयी ने यहां प्रतिनियुक्ति पर रहते हुए डमरू (बलौदाबाजार) में जिस लगन से काम किया था, उसी तरह के परिश्रम और लगन से प्रदेश के अतीत-वैभव को संजोया जा सकता है।
श्री साहूू के पास पर्यटन का महकमा भी है। दुर्भाग्य है कि लंबे समय तक इस विभाग में सचिव पद पर दूसरे प्रदेशों से डेपुटेशन पर आए अफसर काम करते रहे, जिनकी कोई रुचि प्रदेश में पर्यटन के विकास में नहीं थी। चमक-दमक वाली महंगी पुस्तकें , ब्रोशर, बुकलेट, नक्शे छापे गए, जिनमें दी गई जानकारियां भी गलत थीं। लेकिन जिनके लिए बाहर की एजेंसियों को भारी भरकम भुगतान किया गया। पर्यटन मंडल ने करोड़ों की लागत से मोटल बनाए। वे अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं। आज आवश्यक है कि पर्यटन व संस्कृति पर नए सिरे से नीति व कार्यक्रमों का निर्धारण हो, ताकि प्रदेश में रोजगार व राजस्व वृद्धि का एक स्थायी स्रोत तैयार हो सके। अतीत में संस्कृति विभाग ने व्यवसायिक प्रतिष्ठानों तक को उनकी ब्रांड इक्विटी बढ़ाने के लिए अनुदान दिया। यह सब बंद होना चाहिए।
अनुभवी विधायक रवीन्द्र चौबे के पास कृषि और संबंधित विभाग हैं। इस सरकार को जनता की निगाहों में किसानों की सरकार माना गया है। यह संतोष का विषय है कि छत्तीसगढ़ की चार चिन्हारी को लेकर प्राथमिकता के आधार पर क्रियान्वयन प्रारंभ हो गया हैै। चौबेजी को इसके आगे भी देखना है। प्रदेश का कृषि विश्वविद्यालय है तो इंदिरा गांधी के नाम पर, किंतु हाल के वर्षों में यह प्रतिक्रियावादी सोच का क्रीड़ांगन बन गया है। सोचना होगा कि यहां कृषि शिक्षा का वातावरण पुन: कैसे स्थापित किया जाए। यह भी देखा जाए कि प्रदेश की औद्योगिक प्रशिक्षण शालाओं (आई.टी.आई.) में क्या कृषि तकनीकी की शिक्षा जोड़ी जा सकती है, ताकि नौजवानों को उस दिशा में रोजगार मिलने की संभावनाएं बन सकें। गोठान बनाने और पशुधन के संस्था को ध्यान में रखते हुए पशु चिकित्सा शिक्षा (वेटेरेनरी) के बारे में भी सम्यक विचार करना होगा।
डॉ. प्रेमसाय सिंह और उमेश पटेल क्रमश: स्कूली शिक्षा व उच्च शिक्षा संभाल रहे हैं। मेरी राय में तो शिक्षा का एकीकृत एक ही विभाग होना बेहतर होता; लेकिन फिलहाल जो है, उसमें क्या हो सकता है, यह गौरतलब है। शिक्षकों का प्रशिक्षण बुनियादी आवश्यकता है। फिर हमें स्कूलों में पूर्णकालिक शिक्षक चाहिए। शाला प्रबंधन समितियों को सुदृढ़ करने के उपायों पर विचार करना वांछित है। विचारणीय है कि क्या समाजसेवी संस्थाओं का सहयोग शालाओं की स्थिति सुदृढ़ करने में लेना उचित होगा। इसके लिए प्रदेश की प्रमुख सामाजिक संस्थाओं के साथ बातचीत का मंच तैयार करना उपयुक्त हो सकता है।
महाविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव फिर से शुरू करने का निर्णय स्वागत योग्य है। अठारह वर्ष से अधिक आयु के हर युवा को जब राजनीति में भाग लेने का अधिकार है तो उससे वंचित क्यों रखा जाए! लेकिन यह ध्यान रखना होगा कि छात्रसंघ जनतांत्रिक राजनीति की सीढ़ी बने, न कि ठेकेदारी और कमीशनखोरी की। युवा उच्च शिक्षा मंत्री को तत्काल इस तरफ भी ध्यान देना चाहिए कि कॉलेज और वि.वि. में शिक्षकों के सैकड़ों पद रिक्त पड़े हैं। पहुंच वाले शिक्षकों ने अपने लिए आरामदेह प्रतिनियुक्तियां ढूंढ ली हैं। विवि में रजिस्ट्रार के पद भी खाली हैं, और हाईकोर्ट में न जाने कितने मुकदमे चल रहे हैं। याने यहां प्रशासनिक पारदर्शिता व स्वच्छता की महती आवश्यकता है। शिक्षातंत्र के बारे में मेरी राय यह भी है कि शिक्षण संस्थाओं को अधिकतम स्वायत्तता देना चाहिए। संस्था प्रमुख के पद पर कल्पनाशील, ऊर्जावान, ईमानदार व्यक्ति नियुक्त हों, यह देखना भी आवश्यक है।
आज मैंने कुछ विभागों के बारे में उपलब्ध जानकारी के आधार पर बात की है। अन्य विभागों के बारे में भी चर्चा की जा सकती है, लेकिन कॉलम का सीमित स्थान उसकी इजाजत नहीं देता। तथापि भूपेश बघेल और उनके सभी सहयोगियों से हमारी अपेक्षा है कि अधूरी पड़ी योजनाओं को जल्दी पूरा करें। जिन योजनाओं में जनधन का अपव्यय हो रहा है उन पर रोक लगाई जाए, मंत्रियों के आचरण में अभी जो सादगी दिख रही है वह बनी रहे, और प्रदेश की जनता और उनके बीच न सिक्यूरिटी के बैरियर हों और न अहंकार की दीवार ही खड़ी हो।
#देशबंधु में 07 फरवरी 2019 को प्रकाशित

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