भारतीय राजनयिक देवयानी खोब्रागड़े की अमेरिका में गिरफ्तारी एक ऐसा स्तब्ध कर देने वाला प्रसंग है, जिसके जख्म भारत की राष्ट्रीय स्मृति को लंबे समय तक सालते रहेंगे। अमेरिका ने ऐसा क्यों किया? इस बारे में पक्ष-विपक्ष दोनों ने बहुत से तर्क दिए हैं, लेकिन हमें इसके मूल में एक ही बात समझ आती है कि अमेरिका चूंकि एक महाशक्ति व उसके साथ उद्धत राष्ट्र है इसलिए वह अपने लिए कोई भी मर्यादा, कोई लक्ष्मण रेखा स्वीकार नहीं करता। अमेरिका ने जो कह दिया वह मानो पत्थर की लकीर है जिसे वर्तमान राजनीति की भाषा में कहा जाता है- ''नॉन निगोशिएबल''। जो अमेरिका अपने बरसों के सामरिक भागीदार पाकिस्तान पर ड्रोन हमले करने में नहीं हिचकिचाता उससे भारत को क्या उम्मीद रखना चाहिए जिसके संबंध अमेरिका के साथ कभी भी बहुत मधुर नहीं रहे और न दोनों के बीच कभी परस्पर विश्वास की भावना रही। यूं तो अपने अभ्युदय से लेकर अब तक अमेरिका के खाते में बहुत सी खूबियां दर्ज हैं जिनकी तारीफ अलेक्स द ताकविले से लेकर बट्रेंड रसल और जवाहरलाल नेहरू तक ने की है, लेकिन जब अमेरिका विश्व राजनीति के रंगमंच पर आता है तो अपनी इन खूबियों को घर में छोड़ आता है जिसके उदाहरण अनगिनत हैं।
देवयानी खोब्रागडे क़ो अमेरिकी सरकार ने इस आरोप में गिरफ्तार किया कि वे अपनी घरेलू सेवक संगीता रिचर्ड को झूठे दस्तावेज तैयार कर अमेरिका लेकर आईं तथा उसे अमेरिका में लागू न्यूनतम वेतन नहीं दिया। इस आरोप में कितनी सच्चाई है यह एक पृथक बिन्दु है, किन्तु विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या अमेरिका को एक विदेशी राजनयिक के साथ इस तरह का बर्ताव करने का हक था। सहज बुध्दि कहती है कि देवयानी एक सामान्य भारतीय नागरिक नहीं हैं। अपनी सेवा के आधार पर अमेरिका में या अन्य किसी भी देश में वे भारत की सार्वभौम सत्ता का प्रतीक हैं। अन्तरराष्ट्रीय राजनय में दूतावास कर्मियों को मेजबान देश में बहुत से विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं, जिनमें एक यह भी है कि उन पर उस देश में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। याने अमेरिका ने भारत की प्रभुसत्ता का अपमान किया है।
इस बारे में अमेरिका ने एक तकनीकी बारीकी ढूंढ निकाली है कि देवयानी दूतावास की नहीं, बल्कि कौंसुलेट की अधिकारी थीं और इस नाते वे छूट की पात्र नहीं हैं। यह एक कुतर्क है क्योंकि भारत में अमेरिकी दूतावास व कौंसुलेट दोनों के कर्मियों को एक समान विशेषाधिकार प्राप्त हैं। इसका मतलब यह हुआ कि जो व्यवहार भारत अमेरिकी दूतों के साथ करता है, वही व्यवहार अमेरिका को भारतीय दूतों के साथ करना चाहिए। इस सिलसिले में कुछ और तथ्य गौरतलब हैं। देवयानी खोब्रागड़े ने कोई बहुत संगीन जुर्म नहीं किया था, जिसके आधार पर उन्हें छूट की पात्रता न दी जाती। यह एक राजनयिक अधिकारी एवं घरेलू सेवक के बीच का मामला था, जिसे आपस में बैठकर सुलझाना संभव था। दूसरी बात, कोई भी मेजबान देश किसी भी राजनयिक को अवांछित (परसोना नॉन ग्राटा) घोषित कर उसे देश छोड़ने का आदेश दे सकता है। ऐसा कई बार होता है। देवयानी के मामले में अमेरिका नाटक खड़ा करने के बजाय यह रास्ता अपनाता तो यह स्थिति न आती।
इस मामले में जो नए-नए खुलासे हो रहे हैं उनसे अमेरिका की नियत पर और शंका होने लगती है। अमेरिका ने संगीता रिचर्ड को टी-1 श्रेणी का वीजा जारी किया जो मानव तस्करी से उध्दार करने के लिए दिया जाता है। इसके बाद उसके पति और बच्चों को टी-2 और टी-3 वीजा दिए गए जो मानव तस्करी से बचाए गए व्यक्ति के रिश्तेदारों को दिए जाते हैं। इससे प्रतीत होता है कि अमेरिका ने देवयानी खोब्रागड़े को प्रताड़ित करने का इरादा पहले से बना लिया था। अन्यथा जो महिला भारत के सरकारी कर्मचारियों को दिए जाने वाले पासपोर्ट पर यात्रा कर रही हो उसमें मानव तस्करी की बात कैसे उठ गई? न्यूयार्क के सरकारी वकील भारतवंशी प्रीत भरारा ने बीच में यह भी कहा कि उन्होंने संगीता रिचर्ड के परिवार को भारत से सुरक्षित बाहर निकाल लिया है। इसका क्या अर्थ है? क्या रिचर्ड के परिवारजनों को भारत में कोई खतरा था? क्या उन्हें कोई धमकियां दी गई थीं? उनके लिए भारत के अमेरिकी दूतावास में टिकट खरीदे गए, इस मेहरबानी की क्या जरूरत थी?
इस बीच ऐसी खबरें भी सुनने में आई कि संभवत: संगीता रिचर्ड के माता-पिता कभी भारत में अमेरिकी दूतावास में काम करते थे। इसे आधार बनाकर यह शंका प्रकट की गई कि संगीता कहीं अमेरिका के लिए जासूसी तो नहीं करती थी। जिस तरीके से उसे और उसके परिवार वालों को अमेरिकी सरकार ने संरक्षण दिया उससे इस अफवाह को बल मिला। यद्यपि इसकी सच्चाई की तस्दीक शायद कभी नहीं हो पाएगी! इस घटना का दूसरा पहलू यह हो सकता है कि अमेरिका पहुंच जाने के बाद संगीता ने किन्हीं लोगों के फुसलाने से लालच में आकर देवयानी पर केस कर दिया हो, क्योंकि अमेरिका में उसकी हस्तलिखित डायरी तो यही कहती है कि वह देवयानी के यहां खुशी-खुशी और सम्मानपूर्वक कार्य कर रही थी।
इधर इस प्रसंग में एक नया पहलू जुड़ गया है। यह एक प्रकट सत्य है कि भारत में घरेलू कामकाज करने वाली औरतों की स्थिति अच्छी नहीं है। इसे आधार मानकर कुछ स्वयंसेवी संगठनों ने देवयानी खोब्रागड़े पर अपनी घरेलू सेविका के साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया है। मुझे यह एकतरफा कदम लगता है। बिना संगीता रिचर्ड से बात किए, बिना देवयानी खोब्रागड़े का पक्ष जाने, बिना संबंधित तथ्यों का परीक्षण किए कैसे मान लिया जाए कि देवयानी खोब्रागडे दोषी है? यदि संगीता रिचर्ड को देवयानी के घर में बंधक बनाकर रखा गया होता, उसके बाहर आने-जाने पर पाबंदी होती, किसी पड़ोसी के फोन करने पर पुलिस पहुंचकर उसे आज़ाद करवाती तब तो देवयानी को दोषी माना जा सकता था, लेकिन अब तक जो साक्ष्य उपलब्ध हैं, वे कुछ और ही बात कहते हैं।
इस घटनाक्रम में एक पक्ष प्रीत भरारा का है। श्री भरारा भारतवंशी हैं एवं न्यूयार्क राय के सरकारी वकील हैं। वे पिछले दिनों सुर्खियों में आए, जब उन्होंने अरबपति भारतवंशी रजत गुप्ता की कारपोरेट धोखाधड़ी का मामला उजागर कर उन्हें जेल भिजवाया। अमेरिका में भारतवंशियों की एक पूरी पीढ़ी तैयार हो गई है, जिसने वहां जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। इनमें बॉबी जिंदल, सुनीता विलियम्स, विक्रम पंडित, निक्की हेली और ऐसे तमाम लोग शामिल हैं। इनको देख-देखकर हमें ऐसा कुछ अभिमान होता है मानो भारत ने विश्व विजय हासिल कर ली हो। हम भूल जाते हैं कि ये सब अमेरिकी नागरिक हैं जिन्होंने वहां के संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ ली है और भारत उनके लिए अंतत: पराया देश है।
इन भारतवंशी नागरिकों में अपने देश अमेरिका की राजनीति में आगे बढ़ने की इच्छा हो, यह स्वाभाविक है। फिलहाल दो भारतवंशी अमेरिकी राज्यों में गवर्नर पद पर आसीन हैं। किसी दिन कोई राष्ट्रपति भी बन जाए तो हमें आश्चर्य नहीं होगा; लेकिन मॉरिशस, सूरीनाम और फिजी इत्यादि के भारतवंशियों का अपने पुरखों की धरती से जो रागात्मक संबंध है, वह अमेरिका के इन भारतवंशियों में शायद नहीं है। इसलिए कि वे किसानों व मजदूरों की संतानें हैं और ये सम्पन्न सुविधाभोगी भारतीयों के वंशज। प्रीत भरारा अपने समकालीनों से शायद अलग नहीं हैं। देवयानी खोब्रागड़े के रूप में उन्हें एक ऐसा आरोपी मिल गया है, जिसे अगर वे दोषी ठहरा सके तो स्वयं को भारत की गर्भनाल से काटकर पूरी तरह से अमेरिकी कहला सकेंगे और शायद ऐसा करना उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति में सहायक हो सकेगा।
कुल मिलाकर यही प्रतीत होता है कि अमेरिकी प्रशासन तंत्र ने देवयानी खोब्रागड़े को माध्यम बना भारत को नीचा दिखाने की कोशिश की है। भारत को इस षड़यंत्र के सामने कतई नहीं झुकना चाहिए। याद करें कि जब अमेरिका के आव्रजन अधिकारियों ने प्रवासियों की नंगा-झोरी लेना शुरु किया तो ब्राजील व वेनजुएला ने यही बर्ताव अमेरिकी प्रवासियों के साथ करना प्रारंभ कर दिया था।