केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में बढ़ते
प्रदूषण के मद्देनज़र दो दिन पूर्व जो निर्णय लिया है, उसका हम स्वागत करते
हैं। इसके अनुसार सम और विषम नंबर वाले वाहन हर दूसरे दिन ही सड़क पर आ
सकेंगे; इस तरह दिल्ली की सड़कों पर प्रतिदिन दौडऩे वाले लाखों वाहनों की
संख्या आधी हो जाएगी। यह खबर आई नहीं कि आनन-फानन में इसकी आलोचना प्रारंभ
हो गई। कांग्रेस व भाजपा दोनों दिल्ली सरकार के पीछे पड़ गए कि यह
तुगलकशाही है इत्यादि। सोशल मीडिया पर भी अरविन्द केजरीवाल को उपहास का
पात्र बना दिया गया। इसे हम उचित नहीं मानते। इस प्रस्ताव में यदि खामियां
हैं तो उन्हें दूर करने के उपाय भी अवश्य होंगे। बेहतर होता कि आलोचना करने
वाले इसे राजनीति के चश्मे के बजाय दिल्ली में विद्यमान एक भयंकर समस्या
से निबटने की भावना से देखते। पिछले कुछ दिनों से देश की राजधानी में भीषण
वायु प्रदूषण होने की चर्चा खूब हो रही है। इसके साथ यह भी याद कर लें कि
हर साल जाड़ों के मौसम में कोहरे और धुएं के कारण कितनी ट्रेनें रद्द होती
हैं और कितने जहाज उड़ नहीं पाते। आशय यह है कि इस विषय पर सम्यक रूप से
तत्काल विचार किया जाना आवश्यक है।
एक ओर सरकार जनता को निजी वाहन
खरीदने के लिए प्रोत्साहित करती है, दूसरी ओर प्रदूषण की समस्या बढऩे पर
कागजी और जबानी कार्रवाईयों में जुट जाती है। जब दिल्ली में यातायात बाधित
होता है तो उससे पूरे देश को कितना नुकसान उठाना पड़ता है, क्या इसका कोई
हिसाब लगाया गया है? इस दिशा में सबसे पहिले पर्यावरणविद स्व. अनिल अग्रवाल
ने मुहिम चलाई थी, जिसे उनकी अनन्य सहयोगी सुनीता नारायण ने आगे बढ़ाया व
दिल्ली में डीज़ल के बजाय सीएनजी से वाहन चलना प्रारंभ हुआ। बाद में
सार्वजनिक बसों के लिए बीआरटी की योजना पर अमल शुरु किया गया। यह जनहितैषी
योजना दिल्ली के अभिजात वर्ग व उसके मीडिया को नागवार गुजरी तथा उसे सही
रूप में आगे बढऩे से रोक दिया गया। अब केजरीवाल सरकार ने एक ठोस कदम उठाया
है तो उसका विरोध भी इसीलिए हो रहा है कि इससे अभिजात समाज को तकलीफ होगी।
जब कार स्टेटस सिंबल बन जाए, तब मैट्रो या बस में सवारी करना भला किसे पसंद
आएगा। हम मान लेते हैं कि इस निर्णय में व्यवहारिक अड़चनें हैं। ऐसा है तो
उन्हें दूर कैसे किया जाए या विकल्प क्या हो, यह भी तो कोई बताए।
सम-विषम
का यह फार्मूला विश्व में अनेक स्थानों पर लागू है। इसके अलावा अनेक उपाय
समय-समय पर आजमाए गए हैं। लास ऐंजिल्स में एकल सवारी के बजाय पूरी भरी कार
को सड़क पर प्राथमिकता दी जाती है। कार साझा करने वाले एक्सपे्रस-वे का
उपयोग कर सकते हैं। सिंगापुर की मुख्य सड़क आर्चर्ड रोड पर सुबह नौ बजे जो
पहिली कार प्रवेश करती है, उसे भारी जुर्माना देना पड़ता है, याने नागरिक
अपनी कार को भीड़भरे इलाके से यथासंभव दूर रखें। इंग्लैंड में प्रधानमंत्री
तक लोकल ट्रेन और बस में सहज यात्रा कर लेते हैं। जापान के प्रधानमंत्री
को पद संभालते साथ एक नई साईकिल भी भेंट मिलती है। स्वीडन आदि यूरोपीय
देशों में लाखों जन नियमित साईकिल की सवारी करते हैं। आपको केजरीवाल की
योजना पसंद नहीं है तो इसी तरह नए उपाय आप भी क्यों नहीं सोच लेते?
हमारी
राय में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए कारों व निजी वाहनों की संख्या को
सीमित करना परम आवश्यक है। इसमें बाइक व स्कूटर भी शामिल हैं। दूसरे शब्दों
में निजी के बजाय सार्वजनिक यातायात प्रणाली को मजबूत करने से ही समस्या
का स्थायी समाधान होगा। निजी वाहनों की निरंतर बढ़ती संख्या से प्रदूषण तो
बढ़ ही रहा है, अन्य समस्याएं भी खड़ी हो रही हैं, जैसे सड़कों को चौड़ा
करने व फ्लाईओवर बनाने की नित नई मांगें, रोड रेज याने सड़कों पर हो रही
हिंसक घटनाएं जिसमें जान तक चली जाती है, लगातार बढ़ रही सड़क दुर्घटनाएं,
पार्किंग की दिक्कत आदि. अगर सरकार कारों के उत्पादन पर दस साल के लिए रोक
लगा दे और उसके बजाय सार्वजनिक वाहन याने बसों के संचालन पर ध्यान दे तो हर
दृष्टि से लाभ होगा।
देशबन्धु में 07 दिसंबर 2015 को प्रकाशित सम्पादकीय
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