Thursday 4 February 2016

स्मार्ट सिटी का सपना-2




रायपुर के महापौर प्रमोद दुबे बेवजह दुखी, परेशान और क्षुब्ध हो रहे हैं। दुख तो शायद बिलासपुर के महापौर किशोर राय को भी हो रहा होगा, लेकिन वे सत्तारूढ़ पार्टी के समर्पित सिपाही हैं इसलिए उनकी मजबूरी है कि खुलकर कुछ न कह पाएं। किन्तु बात छत्तीसगढ़ के दो शहरों मात्र की नहीं है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी नाराज हैं तथा केन्द्र पर गैरभाजपाई राज्यों के साथ सौतेला बर्ताव करने का आरोप लगा रहे हैं। उधर उत्तराखण्ड के कांग्रेसी मुख्यमंत्री हरीश रावत दुखी होकर भी निराश नहीं हैं। वे केन्द्र सरकार को नए सिरे से प्रस्ताव भेजने की बात कर रहे हैं। इन सबका दुख समझ में आता है किन्तु सच पूछिए तो ये व्यर्थ में आंसू बहा रहे हैं। इन्हें तो खुश होना चाहिए कि सिर पर आई बला फिलहाल टल गई है। मुझे यहां शायद पहेलियां बुझाना छोड़कर साफ-साफ बात करना चाहिए। तो पाठको! यह मामला स्मार्ट सिटी का है। जिन राज्यों और जिन नगरों को सारी जोड़-तोड़ और मशक्कत के बावजूद स्मार्ट सिटी योजना के पहले चरण में शामिल होने का अवसर नहीं मिल पाया वे अपने आपको ठगा गया महसूस कर रहे हैं। लेकिन वास्तविक कहानी कुछ और ही है जिससे वे शायद अब तक अनभिज्ञ हैं।

भोपाल के हमारे मित्र और वरिष्ठ पत्रकार एनडी शर्मा ने दो-तीन दिन पहले ही फेसबुक पर लिखा है कि स्मार्ट सिटी योजना में भोपाल का नाम आ जाने के बाद वहां की दो पुरानी रिहाइशों तुलसी नगर और शिवाजी नगर के नागरिक मुसीबत में पड़ गए हैं। भोपाल से पुराना नाता रखने वालों को याद होगा कि कभी उन्हें 1250 और 1464 क्वार्टर्स के नाम से जाना जाता था। यह भोपाल की अपनी खासियत थी।  तुलसी और शिवाजी नाम से तो दूसरे शहरों में भी कालोनियां मिल जाएंगी। वहां अभी भी 4 बंगला, 45 बंगले और 74 बंगले जैसी रिहाइशें आबाद हैं और उनके नाम नहीं बदले गए हैं। बहरहाल मुद्दा यह है कि स्मार्ट सिटी बनाने के लिए पहले चरण में उन दो इलाकों का चयन किया गया है और इसके साथ यह फरमान भी जारी हो गया है कि उन्हें अपने घर छोड़कर कहीं और जाकर बसना पड़ेगा। इसमें शायद यह आश्वासन निहित है कि जब स्मार्ट सिटी का सरंजाम पूरा हो जाएगा तब उन्हें यहां वापिस बसाने की अनुमति मिल जाएगी! किन्तु नागरिक चिंतित हैं कि जब स्मार्ट सिटी या स्मार्ट कालोनी बनेगी तो उसमें बसने का हक भी तथाकथित स्मार्ट लोगों को ही होगा। सामान्यजन तो बेदखल हो गए तो हो गए।

श्री शर्मा की इस फेसबुक पोस्ट पर इस कॉलम के लिखे जाने तक मध्यप्रदेश सरकार अथवा केन्द्र सरकार से कोई स्पष्टीकरण या खंडन नहीं आया है। मेरा ख्याल है कि आएगा भी नहीं। इस वस्तुस्थिति को जान लेने के बाद नीतीश कुमार और हरीश रावत से लेकर प्रमोद दुबे और किशोर राय तक हर उस राजनेता को प्रसन्न होना चाहिए जिसकी स्मार्ट सिटी की मांग फिलहाल मंजूर नहीं की गई है। इसे और थोड़ा समझ लेते हैं। भोपाल के शिवाजी नगर और तुलसी नगर तो राजधानी क्षेत्र में ही अवस्थित हैं। मंत्रालय और विधानसभा दोनों नजदीक हैं। यहां के अधिकतर रहवासी ही सरकारी कर्मचारी ही होंगे जिन्हें सरकार ही कहीं और बसाने की व्यवस्था कर देगी। लेकिन रायपुर में अगर आपको ऐसे दो वार्डों, कालोनियों या मुहल्लों का चयन करना पड़े तो आप क्या करेंगे? अगर सिविल लाईंस और शंकर नगर के निवासियों को कहीं और जाकर बसने को कहा जाए तो क्या यह संभव होगा? ऐसा होने पर जो बवाल मचेगा उसका ठीकरा अंतत: महापौर प्रमोद दुबे के सिर पर ही फूटेगा। वे इस वस्तुस्थिति को समझ लें तो शुक्र मना सकते हैं कि मुसीबत बुलाने से बच गए।

दरअसल, केन्द्र सरकार ने जब स्मार्ट सिटी  योजना का बीड़ा उठाया और उसका जो गैरअनुपातिक व धुआंधार प्रचार किया उसमें देश के तमाम मेयर और तमाम मुख्यमंत्री बह गए। एक तो उन्हें लगा कि अपने शहर को स्मार्ट सिटी बना देने से उन्हें भी स्मार्ट मेयर की पदवी मिल जाएगी तथा अपने समकक्षों के सामने उन्हें इठलाने का मौका मिल जाएगा। इसमें एक और बात जो सार्वजिनक रूप से कबूल नहीं की जा सकती थी वह यह कि स्मार्ट सिटी के नाम पर जो भारी भरकम राशि मिलती उसमें नगर के कल्याण के साथ पार्टी का और निज का भी कुछ कल्याण संभव हो जाता। अगर इस बिन्दु पर हमारे नेतागण दुखी हों तो वह समझ में आता है और यहां हमारी उनके साथ सहानुभूति है। मैं पाठकों का ध्यान अपने 30 जुलाई के लेख की ओर आकर्षित करना चाहता हूं जिसमें मैंने स्मार्ट सिटी की अवधारणा और उसकी कुछ सीमाओं का उल्लेख किया था। मैंने उस समय तक प्राप्त सूचना के आधार पर यह भी लिखा था कि स्मार्ट सिटी वर्तमान नगर में नहीं बल्कि एक नए उपनगर अथवा सेटेलाइट टाउनशिप के रूप में विकसित की जाएगी। वह बात आज प्रमाणित हो रही है।

मेरे सामने भारत सरकार के शहरी विकास मंत्रालय के सचिव मधुसूदन प्रसाद का एक बयान है। इसमें उन्होंने बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा है कि स्मार्ट सिटी मिशन की योजना ही इस रूप में बनाई गई है कि किसी एक सुगठित क्षेत्र का चयन कर स्मार्ट सिटी के तमाम मानकों पर उसका विकास किया जाएगा तथा बाद में शहर के अन्य इलाकों में उसका अनुकरण किया जाएगा। श्री प्रसाद ने मिशन के तीन स्पष्ट भाग किए हैं-क) मूलभूत संरचना, ख) स्मार्ट साल्यूशन्स अथवा सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल एवं ग) सुखद-सुरक्षित वातावरण।  इनमें से भी जो दूसरा हिस्सा है अर्थात सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल, उसको पूरे शहर में समानांतर लागू किया जाएगा। यद्यपि यहां बात कुछ ज्यादा तकनीकी हो रही है, लेकिन इसे समझ लेना बेहतर होगा। मोटे तौर पर सरकार का कहना है कि स्मार्ट सिटी के अंतर्गत चुने गए उन बीस या सौ शहरों में सिर्फ एक इलाके का समग्र विकास होगा, जिसमें चौबीस घंटे बिजली होगी, चौबीस घंटे पानी मिलेगा, वर्षा जल संचित होगा, निस्तार तथा कूड़ा-कचरा निपटान की माकूल व्यवस्था होगी। सिर्फ इसी एक इलाके में पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ होंगे, और साईकिल चलाने वालों के लिए अलग लेन, वाहनमुक्त सड़कें व क्षेत्र होंगे, खूब खुली जगहें होंगी, व बच्चों, महिलाओं व वृद्धों की सुरक्षा की गारंटी इत्यादि होगी।

इसके बरक्स सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल जो पूरे शहर में होना है उसमें आईटी का विस्तार, यातायात व पार्किंग के लिए डिजिटल तकनीकी का उपयोग जैसी बातें शामिल हैं। इसे हम अगर उदाहरण के लिए रायपुर में घटित करके देखें और पुन: उदाहरण के लिए शंकर नगर को ले लें तो यह समझ में आता है कि उस इलाके में स्मार्ट सिटी के सारे मानक विद्यमान होंगे, लेकिन पुरानी बस्ती, बूढ़ापारा, नयापारा, तात्यापारा, रामसागरपारा, गुढिय़ारी इत्यादि इलाकों में सब कुछ वैसा ही चलता रहेगा जैसा अब तक चलता आया है। वाई-फाई तो खैर सब जगह पहुंच ही गया है, लेकिन दूसरे मानक के अनुरूप इन इलाकों में कैसे तो पार्किंग होगी और कैसे टै्रफिक व्यवस्थित होगा, यह न तो पहले महापौर स्वरूपचंद जैन बतला सकते हैं और न वर्तमान महापौर प्रमोद दुबे। जो तीसरा मानक है सुखद-सुरक्षित वातावरण का उसकी तो कल्पना भी हमें नहीं करनी चाहिए। हमें समझ में नहीं आता कि क्यों तो भारत सरकार ने सौ शहरों के सामने स्मार्ट सिटी का चारा फेंका और क्यों रायपुर, बिलासपुर जैसे शहर उस चारे को निगल कर फंस गए! प्रमोद दुबे जब नौकरशाही पर आरोप लगाते हैं कि उसने अपना केस मजबूती से सामने नहीं रखा तो उनकी बात में सत्य का एक अंश अवश्य है। हमारे अधिकतर जनप्रतिनिधि आधुनिक टेक्नालॉजी के बारे में अधिक जानकारी नहीं रखते। उन्हें इसमें रुचि भी नहीं है। उनके पास न तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण है और न विज्ञान की प्रगति से कोई सरोकार। ऐसे में वे अक्सर उन अफसरों पर निर्भर रहते हैं जो आईआईटी और आईआईएम इत्यादि से डिग्री लेकर देश की सेवा कर रहे हैं। उनसे यह अपेक्षा करना उचित है कि वे स्मार्ट सिटी हो या ऐसी कोई अन्य योजना उसके सारे पहलुओं से जनप्रतिनिधियों को भलीभांति अवगत कराएं ताकि योजना में शामिल होने या न होने का निर्णय सोच-समझकर लिया जा सके।

भारत सरकार को भी एकदम शुरू में ही स्थिति स्पष्ट कर देना चाहिए थी कि जिन सौ शहरों का चयन किया जा रहा है उसमें पूरा शहर नहीं बल्कि उसका एक छोटा हिस्सा ही लाभान्वित होगा। हमें बल्कि यह भी लगता है कि भारत सरकार को एक-दो प्रांतों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में पहले दो-तीन शहर स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित कर देना था। बात वहां से आगे बढ़ती तो उसे सही दिशा का पालन करते हुए लक्ष्य तक पहुंचने में सहायता मिलती।

देशबन्धु में 04 फरवरी 2016 को प्रकाशित 

टिप्पणी: इस संबंध में पहला लेख 30 जुलाई 2015 को प्रकाशित हुआ था।

No comments:

Post a Comment