Wednesday 28 February 2018

गडकरी जी, ये सौ रुपए किस बात के?



शीर्षक पढ़कर आप जान गए होंगे कि मैं केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से ही सवाल पूछ रहा हूं। हुआ कुछ ऐसा कि इसी 20 फरवरी को मैं सड़क मार्ग से नागपुर से जबलपुर जा रहा था। नागपुर से निकलते-निकलते रात साढ़े आठ बज चुके थे। वहां से सिवनी लगभग एक सौ बीस किलोमीटर है। सोचा था कि दो-ढाई घंटे में सिवनी पहुंचकर रात वहीं रुक कर अगली सुबह जबलपुर के लिए निकल पड़ेंगे। जैसा सोचा था वैसा नहीं हुआ। सिवनी पहुंचने तक आधी रात से कुछ ऊपर का समय हो गया। नागपुर-जबलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग-7 पर फोरलेन का काम चल रहा है जिसके चलते रात के समय ड्राइविंग में काफी असुविधा हुई। समय भी अधिक लगा। मध्यप्रदेश सीमा आने के कुछ पहले टोल टैक्स का  नाका आया और वहां सौ रुपए भरना पड़े। सवाल इसी बात पर है कि जब सड़क पूरी नहीं बनी है तो टोल टैक्स की वसूली क्यों हो रही है? सिवनी से अगली सुबह जब जबलपुर के लिए निकले तब भी पाया कि काफी दूरी तक फोरलेन का काम चल रहा है। टोल टैक्स के दो नए नाके भी बन गए हैं, लेकिन वे चालू नहीं किए गए हैं। यह सरकार का ही नियम है कि जब सड़क या पुल पूरी तरह से बन न जाए, टोल टैक्स की वसूली नहीं होती। विदर्भ के इस नाके पर सौ रुपए क्यों लिए जा रहे हैं, इसका कोई उत्तर गडकरी जी के मंत्रालय से मिल जाए तो मैं आभार मानूंगा।
इस कॉलम के नियमित पाठक जानते हैं कि मेरे पैरों में चक्कर है और मैं काम-बेकाम यात्राएं करते रहता हूं। इस बार की यात्रा खासी दिलचस्प थी। रायपुर से नागपुर, फिर एक दिन में ही विदर्भ के तीन जिलों के भीतरी रास्ते पर यात्रा और उसी रात जबलपुर की दिशा में प्रयाण। सिवनी में रात्रि विश्राम के लिए एक होटल में आरक्षण करवा लिया था। सवा बारह बजे रात होटल को ढूंढना थोड़ा कठिन था। बाइक सवार दो नौजवान दिखे, उनसे पूछा, उन्होंने रास्ता बताया, साथ में सलाह भी दे डाली- अंकल, आपके फोन में जीपीएस चालू करके क्यों नहीं देख लेते! उन्हें क्या बताते कि जीपीएस ने तो तीन किलोमीटर पहले ही गंतव्य आ जाने की सूचना दे दी थी। गूगल देवता पर विश्वास करना तो पड़ता है। खैर! नई उम्र के उन बच्चों ने बाइक पर हमारा मार्गदर्शन किया और होटल तक हमें छोड़ दिया। यह बात अलग है कि होटल के काउंटर पर बैठे रात्रि क्लर्क ने कहा कि आपका कमरा थोड़ी देर पहले किसी और को दे दिया है, आप कोई दूसरा होटल ढूंढ लीजिए। पन्द्रह मिनट के भीतर दो अलग-अलग अनुभव मिल गए।
सिवनी छोटा-सा शहर है। होटलों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं है। विवाह का मुहूर्त था सो जिन दो-तीन होटलों का दरवाजा खटखटाया वहां जगह नहीं मिली। रात के एक बजने आ रहा था और हम नींद और थकान से बेहाल हो रहे थे। मुझे अपने सारथी की चिंता भी लगी थी कि वे सुबह नौ बजे से लगातार गाड़ी चला रहे थे। सिवनी शहर में कुछ आगे बढ़े तो एक अच्छा होटल दिखाई दिया। उसके मेनगेट पर भीतर ताला लगा था। हार्न बजाया, कोई उत्तर नहीं मिला। यहां गूगल ने सचमुच हमारी मदद की। मैंने स्मार्टफोन पर होटल का नाम टाइप किया, उसका टेलीफोन नंबर आ गया, फोन मिलाया, वहां रिसेप्शन पर जो प्रभारी था उसने तुरंत फोन उठाया। उसे बताया कि हम आपके गेट पर खड़े हैं। दो मिनट में मेनगेट का ताला खुला और आखिरकार हमें हाथ-पैर फैलाकर सोने के लिए जगह मिल गई। उस रात चार अनुभव हुए। दो डिजिटल दुनिया के, दो वास्तविक दुनिया के। दोनों में स्वीकार-अस्वीकार या सही-गलत का प्रतिशत फिफ्टी-फिफ्टी रहा। दूसरे शब्दों में गूगल को अपने नक्शों इत्यादि में सौ फीसदी प्रमाणिकता लाने के लिए अभी और काम करने की जरूरत है; वहीं दूसरी ओर अतुल्य भारत से लेकर एमपी गजब के विज्ञापनों की साख कायम करने के लिए भी जमीनी स्तर पर काम करना आवश्यक है।
नागपुर को केन्द्र में रखकर विदर्भ के कुछ गांवों की यात्रा का कार्यक्रम पहले से ही तय था, लेकिन जबलपुर का कार्यक्रम किसी अपरिहार्य कारण से अचानक बन गया। इसमें थोड़ी अफरा-तफरी हो गई। नागपुर से काटोल, काटोल से कारंजा, तलेगांव होकर धामणगांव और वहां से वर्धा तक तो कोई खास परेशानी नहीं हुई। धामणगांव में पता चला कि नागपुर से यवतमाल, औरंगाबाद होकर मुंबई तक एक सिक्सलेन सड़क बनने जा रही है, जिसे समृद्धि महामार्ग का नाम दिया गया है। इस सड़क के बनने के बाद जब समृद्धि आएगी तब आएगी। फिलहाल इतना हुआ है कि रास्ते के जिन किसानों की जमीनें ली गई हैं उन्हें उम्मीद से काफी अधिक मुआवजा मिल गया है। एक तरफ विदर्भ में किसानों की आत्महत्या की खबरें और दूसरी तरफ पन्द्रह लाख एकड़ तक का मुआवजा! जाहिर है कि खेतिहर मजदूरों को इससे कोई लाभ नहीं मिला होगा। जो मिला है वह सड़क किनारे के भूस्वामियों को।
समृद्धि महामार्ग की यह योजना नितिन गडकरी की ही है। कहते हैं कि सड़क 2022 तक शुरू हो जाएगी, लेकिन अभी तो जो वर्तमान महामार्ग है उसमें वर्धा-नागपुर की अस्सी किलोमीटर की दूरी तय करने में दो घंटे से अधिक समय लग रहा है। इस सड़क पर यातायात का दबाव बहुत अधिक है। बूटी बोरी के औद्योगिक क्षेत्र से नागपुर शहर तक फोरलेन है, लेकिन वह भी यातायात का दबाव झेलने में सक्षम नहीं है। जो बची-खुची कसर है वह मेट्रो परियोजना पूरी कर दे रही है। वाहन चींटी की रफ्तार से आगे बढ़ते हैं। कुल मिलाकर कोफ्त होने लगती है। ऐसा लगता है कि भाजपा सरकार को अधोसंरचना के ज्यादा से ज्यादा काम शुरू कर देने की बहुत जल्दी रही है। उसमें नागरिक सुविधाओं की अनदेखी कर दी गई है। हो सकता है कि जब मेट्रो चालू हो, तब लोग गडकरी जी की वाहवाही करें। अभी तो उन्हें आलोचना ही सुनना पड़ेगी।
नागपुर से जबलपुर के रास्ते पर कामठी। कुल जमा अठारह किलोमीटर। यहां तक मेट्रो का काम चल रहा है और कार हो या अन्य वाहन, बीस किलोमीटर से ज्यादा की रफ्तार नहीं मिलती। बहरहाल सिवनी पहुंचने तक हमें जो तकलीफ हुई उसका मलाल जबलपुर से रायपुर के दौरान खत्म हो गया। एक समय था जब रायपुर से कवर्धा, चिल्फी, भुआ-बिछिया, मंडला होकर जबलपुर की यात्रा होती थी। सड़क बहुत अच्छी कभी नहीं थी, लेकिन तीन सौ इकसठ किलोमीटर की दूरी आराम से सात घंटे में तय हो जाती थी। कवर्धा के आगे जबलपुर के पहले-पहले तक सतपुड़ा के जंगलों से होकर रास्ता गुजरता था। साल और सागौन, आम और महुआ और न जाने कितने तरह के वृक्ष हरियाली बिखेरते थे और रास्ते पर छाया करते थे। बरसाती झरनों का पानी नेत्रों को शीतल करता था। लेकिन न जाने क्यों इस रास्ते की दुर्गति होना शुरू हुई। राष्ट्रीय राजमार्ग का दर्जा मिला, फिर भी कोई सुधार नहीं आया तब सड़क मार्ग से जबलपुर जाने की मजबूरी में नए रास्ते खोजना पड़े कभी गोंदिया-बालाघाट होकर, कभी मुंगेली-पंडरिया-डिंडोरी होकर तो कभी बिलासपुर-अमरकंटक-डिंडोरी होकर।
ये वैकल्पिक रास्ते पचास से लेकर सौ किलोमीटर तक अधिक लंबे थे, जिसका अर्थ था यात्रा में दो-ढाई घंटे का अतिरिक्त समय और पांच-सात लीटर अधिक पेट्रोल। राहत की बात है कि मंडला का रास्ता एक बार फिर चालू हो गया है। पूरा नहीं बना है, लेकिन मध्यप्रदेश के हिस्से में काम की रफ्तार तेज दिख रही है। छत्तीसगढ़ में अपेक्षित गति नहीं है। अभी जबलपुर और मंडला के बीच रास्ता ठीक नहीं है, लेकिन जबलपुर से बरेला, मनेरी, निवास होकर मंडला तक बहुत अच्छी सड़क बन गई है, जिस पर चलना आनंददायक था। मंडला से छत्तीसगढ़ की सीमा तक राष्ट्रीय राजमार्ग अपने नाम के अनुरूप बन चुका है। यह फोरलेन तो नहीं है, लेकिन जितना यातायात है उसके अनुपात में पर्याप्त है। चिल्फी घाटी से उतरने तक रास्ता ठीक है। उसके आगे काम चल रहा है लेकिन डॉ. रमन सिंह का इलाका होने के बावजूद उसमें सुस्ती परिलक्षित की। एक बार यह राष्ट्रीय राजमार्ग पूरा बन जाए तो पश्चिमी भारत में जैसलमेर से लेकर दक्षिण में विशाखापटट्नम के समुद्र तट तक एक शानदार रास्ता बन जाएगा। जैसलमेर से जोधपुर, जयपुर, भोपाल, जबलपुर, कवर्धा, सिमगा, तिल्दा, खरोरा, आरंग, अभनपुर और वहां से जगदलपुर होते हुए विशाखापट्टनम। देखें यह सपना कब पूरा होता है।
देशबंधु में 01 मार्च 2018 को प्रकाशित 

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