अभी-अभी
सरसों के खेत से
डुबकी लगाकर निकला है
आम का एक बिरवा,
अभी-अभी
सरसों के फूलों पर
ओस छिड़क कर गई है
डूबती हुई रात,
अभी-अभी
छोटे भाई के साथ
शरारत करती चुप हुई है
एक नन्हीं बिटिया,
अभी-अभी
बूढ़ी अम्माँ को सहारा दे
बर्थ तक लाई है
एक हँसमुख बहू,
अभी सुबह की धूप में
रेल लाईन के किनारे
उपले थाप रही है
एक कामकाजी औरत,
अभी सुदूर देश में
अपने नवजात शिशु के लिए
किताब लिख रहा है
एक युद्ध संवाददाता,
अभी मोर्चे से लौट रहा है
वीरता का मैडल लेकर
अपने परिवार के पास
एक सकुशल सिपाही,
अभी मैंने
अवध की शाम
नहीं देखी है,
अभी मैं जग रहा हूँ
लखनऊ के पास
अपना पहिला सबेरा,
और खुद को
तैयार कर रहा हूँ
एक खुशनुमा दिन के लिए।
06.02.1999
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