भारत के प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी मास्को से व्हाया काबुल दिल्ली लौटते हुए लाहौर उतरे और
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के परिवार के साथ उन्होंने खुशी के
मौके पर कुछ घंटे बिताए। श्री मोदी की इस पहल का हम स्वागत करते हैं।
प्रधानमंत्री का यह स्टॉप ओवर कितना अचानक था उसे लेकर हमें शंका है, लेकिन
एक कांग्रेस पार्टी को छोड़कर भारत में ही नहीं, विदेशों में भी मोदी-शरीफ
भेंट का अमूमन स्वागत किया गया है। यह बात समझ से परे है कि कांग्रेस
पार्टी ने इस पर आपत्ति क्यों की। पार्टी प्रवक्ता और पूर्व मंत्री मनीष
तिवारी जब तीखे स्वर में पूछ रहे थे कि मोदी देश को बताएं कि नवाज शरीफ से
उन्होंने क्या बात की? तब वे एक गंभीर राजनेता के बजाय टीवी के तूफानी
सूत्रधार अर्णव गोस्वामी की नकल करते नज़र आ रहे थे, जो बात-बात में देश
जानना चाहता है की रट लगाए रहते हैं। हमें कांग्रेस से ऐसे बचकाने वक्तव्य
की उम्मीद नहीं थी।
नरेन्द्र मोदी के प्रचारतंत्र ने यह जतलाने की कोशिश की है कि लाहौर में उनका रुकना एक आकस्मिक घटना थी, लेकिन यह बात किसी के गले नहीं उतर रही। एक तो अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में इस स्तर की अचानक, अनौपचारिक और सरसरी मुलाकातों के कोई खास दृष्टांत नहीं हैं। हो सकता है कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री अमेरिका के राष्ट्रपति से कभी इस तरह घूमते-घामते मिलने पहुंच गए हों; भारतीय उपमहाद्वीप में नेपाल, बंगलादेश अथवा श्रीलंका के राष्ट्रप्रमुखों की दिल्ली यात्रा के ऐसे उदाहरण अवश्य हैं, लेकिन उनके पीछे इन देशों के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंधों की लंबी परंपरा रही है। सामान्य तौर पर शासन प्रमुखों की मुलाकातें शिष्टाचार के एक बंधे-बंधाए ढांचे के भीतर ही होती हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते जैसे बनते-बिगड़ते रहे हैं उसमें ऐसी अनौपचारिकता की गुंजाइश अब तक तो बिल्कुल नहीं रही है। अगर मोदीजी एक स्वागत योग्य नई परंपरा डाल रहे हैं तो अभी उसकी पुष्टि होना बाकी है।
लाहौर मुलाकात आकस्मिक नहीं थी इसका एक अनुमान उस गुलाबी पगड़ी से होता है, जो प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने अपनी नातिन की शादी में अगले दिन पहनी। खबर है कि यह पगड़ी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें भेंट की है। यह भेंट उन्होंने कब दी होगी? अगर श्री शरीफ के विगत वर्ष श्री मोदी के शपथ ग्रहण में आने पर उन्हें उपहारस्वरूप दी गई हो तब तो बात वहीं समाप्त हो जाती है। यह कयास भी लगाया जा सकता है कि मोदीजी ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के हाथों इसे भेजा हो, जब वे पिछले माह पाक विदेश मंत्री से मिलने इस्लामाबाद जा रही थीं और तब शरीफ साहब के घर जा उनके पूरे परिवार से मिलकर आईं। उस समय उन्होंने श्री शरीफ की बेटी से यह भी कहा था कि अपनी दादी को बता देना कि मैंने उनसे जो वायदा किया था उसे पूरा करने की कोशिश करूंगी। पाकिस्तान के प्रतिष्ठित अखबार डॉन के स्तंभकार शोएब दानियल ने पूछा है कि यह वायदा क्या था?
बहरहाल गुलाबी पगड़ी का जहां तक सवाल है यह कल्पना भी की जा सकती है कि मोदीजी अपने साथ अफगानिस्तान में भेंट करने के लिए कुछ पगडिय़ां ले गए हों और उसमें कुछ स्टॉक बच गया हो। इन सबके अलावा यह भी तो संभव है कि हमारे प्रधानमंत्री ने लाहौर में रुकने का प्रोग्राम पहले से बना रखा हो। और जिस तरह पिछले साल उन्होंने नवाज शरीफ की माताजी के लिए साड़ी भिजवाई थी वैसे ही इस बार वे पगड़ी लेकर गए। आखिरकार हमारे देश में पगड़ी का संबंध सम्मान से जो ठहरा। लाहौर प्रवास पूर्व निर्धारित था। इसका एक अन्य संकेत नवाज शरीफ के गांव रायविंड में मोदीजी के लिए विशेष तौर पर तैयार शाकाहारी भोजन से भी मिलता है। कोई पुराना परिचित घर आए और घर में जो दाल-रोटी बनी है वो खाकर चला जाए, मामला इतना सीधा तो था नहीं। प्रधानमंत्री के लिए भोज की व्यवस्था करने में समय और परिश्रम दोनों लगे होंगे, यह सामान्य समझ कहती है। अर्थात् नवाज शरीफ के अपने अतिथि के आगमन के बारे में पर्याप्त समय रहते सूचना रही होगी तभी इस तरह की मुकम्मल खातिरदारी हो सकी कि पाक प्रधानमंत्री अपने भाई और बेटों के साथ सज-धजकर अगवानी करने लाहौर विमानतल पहुंच पाए।
सवाल उठता है कि श्री मोदी को रहस्य का यह आवरण बुनने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई। हम समझते हैं कि यह उनके व्यक्तित्व एवं कार्यशैली का अभिन्न अंग है। किसी पर्यवेक्षक ने उन्हें राजनीति में बॉलीवुड का स्टार होने की संज्ञा दी है। यह उपमा सच्चाई से दूर नहीं है। वे गुजरात के मुख्यमंत्री रहे हों, या फिर प्रधानमंत्री पद के दावेदार या फिर आज के प्रधानमंत्री, उनका ध्यान हमेशा अपनी निजी छवि को संवारने में लगा रहता है। वे विगत डेढ़ वर्ष के दौरान अपनी नित्य नूतन वेशभूषा के कारण जितना चर्चाओं में आए हैं वह विश्व के राजनेताओं के बीच एक कीर्तिमान ही माना जाएगा। ऐसी चर्चा चलने पर अनायास उनका कई लाख का सूट और उन पर सोने के तारों से बुने गए नाम का ख्याल आ जाता है। श्री मोदी जितने अधिक कैमरा सजग हैं वह भी अपने आप में एक मिसाल है। कुछ माह पहले लंदन यात्रा के दौरान चलते समय जब उनका ध्यान कैमरे पर था तब ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन को उन्हें हाथ पकड़कर संभालना पड़ा था।
जो भी हो, भारत के प्रधानमंत्री की लाहौर यात्रा एक शुभ लक्षण है। यह सुखद संयोग है कि मोदी-शरीफ भेंट क्रिसमस के शुभ दिन हुई, जिसे मोदीजी सुशासन दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं। यह भी संयोग है कि उसी दिन अटल बिहारी वाजपेयीजी का जन्मदिन था; जिनकी सलाह मोदीजी मान लेते तो राजनीति के पृष्ठों में कहां खो गए होते, नहीं मालूम। मदनमोहन मालवीय का जन्मदिन भी उसी दिन था जिन्हें अपने लोकसभा क्षेत्र को ध्यान में रखकर ही संभवत: मोदीजी ने भारत रत्न से अलंकृत किया। इन संयोगों के बीच यह संयोग भी क्या कम था कि 25 दिसम्बर को ही नवाज शरीफ का भी जन्मदिन था। उस दिन उनकी नातिन की शादी की मेहंदी रस्म भी थी। यह मानो सोने पर सुहागे वाली बात थी। नवाज शरीफ ने मोदीजी को आजकल प्रचलित परंपरा के अनुसार कोई रिटर्न गिफ्ट दिया या नहीं यह तो हम नहीं जानते, लेकिन अब मोदीजी प्रत्याशा अवश्य कर सकते हैं कि 2016 में उनके जन्मदिन 17 सितम्बर पर नवाज शरीफ एक बार फिर भारत आएंगे और रिश्ते सुधारने की दिशा में दोनों एक कदम और आगे बढ़ेंगे।
प्रधानमंत्री लाहौर क्यों उतरे इसे लेकर भांति-भांति के कयास लगाए जा रहे हैं। एक अनुमान यह व्यक्त किया गया है कि चूंकि अगले बरस सार्क सम्मेलन पाकिस्तान में होना है और उसमें श्री मोदी अवश्य जाना चाहेंगे इसलिए यह भेंट की गई। एक अन्य अनुमान में कहा गया कि भारत सुरक्षा परिषद में अपनी दावेदारी को पुख्ता करने के लिए पाकिस्तान की सहमति चाहता है। हमें ये दोनों बातें दूर की कौड़ी प्रतीत होती हैं। सार्क सम्मेलन आगामी नवम्बर में है और भारत-पाक संबंधों की वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह एक लंबा समय है। सुरक्षा परिषद में भारत का सदस्य बन पाना न तो सरल है और न तत्काल संभव। उसमें अंतरराष्ट्रीय राजनीति के बहुत से गुणा-भाग हैं। पाकिस्तान का इस मुद्दे पर भारत को समर्थन का चीन के रुख पर भी निर्भर करता है। जिस सदाशय से भारत ने चीन का साथ दिया वही सदाशय जब चीन दिखाएगा तभी भारत के लिए सुरक्षा परिषद का सदस्य बन पाना संभव है फिर इसमें ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका अथवा इजिप्त, जर्मनी, जापान के प्रवेश का प्रश्न भी जुड़ा हुआ है।
हमारा जहां तक विचार है प्रधानमंत्री मोदी को यह समझ आ रहा है कि पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारना देश की शांति और सुरक्षा के लिए पहली शर्त है। वे अगर विवादों और लंबित प्रश्नों को सुलझा पाए तो अपना नाम इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में लिखा लेने के अधिकारी हो जाएंगे। देश के हर प्रधानमंत्री ने इस दिशा में भरसक प्रयत्न किए हैं, किन्तु कहीं न कहीं जाकर बात टूटते गई। आज वैश्विक राजनीति में आर्थिक मुद्दे पहले से कहीं ज्यादा प्रभावी हो गए हैं, वित्तीय पूंजी का दखल बढ़ गया है, कार्पोरेट घराने राजनीति के माध्यम से अपना वर्चस्व बढ़ाने में लगे हैं। इन घरानों ने श्री मोदी से बहुत आशाएं बांध रखी हैं। वे अगर पाकिस्तान में नवाज शरीफ के साथ-साथ वहां के सैन्यतंत्र के साथ पटरी बैठा सके तो भारत-पाक मैत्री के रास्ते की बाधाएं दूर हो सकती हैं। इस दिशा में एक बड़ी अड़चन भारत में संघ के मनोगत को लेकर है। राम माधव का बयान इस ओर इशारा करता है। हम प्रतीक्षा करेंगे कि नए वर्ष में यह भेंट क्या रंग लाती है।
नरेन्द्र मोदी के प्रचारतंत्र ने यह जतलाने की कोशिश की है कि लाहौर में उनका रुकना एक आकस्मिक घटना थी, लेकिन यह बात किसी के गले नहीं उतर रही। एक तो अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में इस स्तर की अचानक, अनौपचारिक और सरसरी मुलाकातों के कोई खास दृष्टांत नहीं हैं। हो सकता है कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री अमेरिका के राष्ट्रपति से कभी इस तरह घूमते-घामते मिलने पहुंच गए हों; भारतीय उपमहाद्वीप में नेपाल, बंगलादेश अथवा श्रीलंका के राष्ट्रप्रमुखों की दिल्ली यात्रा के ऐसे उदाहरण अवश्य हैं, लेकिन उनके पीछे इन देशों के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंधों की लंबी परंपरा रही है। सामान्य तौर पर शासन प्रमुखों की मुलाकातें शिष्टाचार के एक बंधे-बंधाए ढांचे के भीतर ही होती हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते जैसे बनते-बिगड़ते रहे हैं उसमें ऐसी अनौपचारिकता की गुंजाइश अब तक तो बिल्कुल नहीं रही है। अगर मोदीजी एक स्वागत योग्य नई परंपरा डाल रहे हैं तो अभी उसकी पुष्टि होना बाकी है।
लाहौर मुलाकात आकस्मिक नहीं थी इसका एक अनुमान उस गुलाबी पगड़ी से होता है, जो प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने अपनी नातिन की शादी में अगले दिन पहनी। खबर है कि यह पगड़ी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें भेंट की है। यह भेंट उन्होंने कब दी होगी? अगर श्री शरीफ के विगत वर्ष श्री मोदी के शपथ ग्रहण में आने पर उन्हें उपहारस्वरूप दी गई हो तब तो बात वहीं समाप्त हो जाती है। यह कयास भी लगाया जा सकता है कि मोदीजी ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के हाथों इसे भेजा हो, जब वे पिछले माह पाक विदेश मंत्री से मिलने इस्लामाबाद जा रही थीं और तब शरीफ साहब के घर जा उनके पूरे परिवार से मिलकर आईं। उस समय उन्होंने श्री शरीफ की बेटी से यह भी कहा था कि अपनी दादी को बता देना कि मैंने उनसे जो वायदा किया था उसे पूरा करने की कोशिश करूंगी। पाकिस्तान के प्रतिष्ठित अखबार डॉन के स्तंभकार शोएब दानियल ने पूछा है कि यह वायदा क्या था?
बहरहाल गुलाबी पगड़ी का जहां तक सवाल है यह कल्पना भी की जा सकती है कि मोदीजी अपने साथ अफगानिस्तान में भेंट करने के लिए कुछ पगडिय़ां ले गए हों और उसमें कुछ स्टॉक बच गया हो। इन सबके अलावा यह भी तो संभव है कि हमारे प्रधानमंत्री ने लाहौर में रुकने का प्रोग्राम पहले से बना रखा हो। और जिस तरह पिछले साल उन्होंने नवाज शरीफ की माताजी के लिए साड़ी भिजवाई थी वैसे ही इस बार वे पगड़ी लेकर गए। आखिरकार हमारे देश में पगड़ी का संबंध सम्मान से जो ठहरा। लाहौर प्रवास पूर्व निर्धारित था। इसका एक अन्य संकेत नवाज शरीफ के गांव रायविंड में मोदीजी के लिए विशेष तौर पर तैयार शाकाहारी भोजन से भी मिलता है। कोई पुराना परिचित घर आए और घर में जो दाल-रोटी बनी है वो खाकर चला जाए, मामला इतना सीधा तो था नहीं। प्रधानमंत्री के लिए भोज की व्यवस्था करने में समय और परिश्रम दोनों लगे होंगे, यह सामान्य समझ कहती है। अर्थात् नवाज शरीफ के अपने अतिथि के आगमन के बारे में पर्याप्त समय रहते सूचना रही होगी तभी इस तरह की मुकम्मल खातिरदारी हो सकी कि पाक प्रधानमंत्री अपने भाई और बेटों के साथ सज-धजकर अगवानी करने लाहौर विमानतल पहुंच पाए।
सवाल उठता है कि श्री मोदी को रहस्य का यह आवरण बुनने की आवश्यकता क्यों महसूस हुई। हम समझते हैं कि यह उनके व्यक्तित्व एवं कार्यशैली का अभिन्न अंग है। किसी पर्यवेक्षक ने उन्हें राजनीति में बॉलीवुड का स्टार होने की संज्ञा दी है। यह उपमा सच्चाई से दूर नहीं है। वे गुजरात के मुख्यमंत्री रहे हों, या फिर प्रधानमंत्री पद के दावेदार या फिर आज के प्रधानमंत्री, उनका ध्यान हमेशा अपनी निजी छवि को संवारने में लगा रहता है। वे विगत डेढ़ वर्ष के दौरान अपनी नित्य नूतन वेशभूषा के कारण जितना चर्चाओं में आए हैं वह विश्व के राजनेताओं के बीच एक कीर्तिमान ही माना जाएगा। ऐसी चर्चा चलने पर अनायास उनका कई लाख का सूट और उन पर सोने के तारों से बुने गए नाम का ख्याल आ जाता है। श्री मोदी जितने अधिक कैमरा सजग हैं वह भी अपने आप में एक मिसाल है। कुछ माह पहले लंदन यात्रा के दौरान चलते समय जब उनका ध्यान कैमरे पर था तब ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन को उन्हें हाथ पकड़कर संभालना पड़ा था।
जो भी हो, भारत के प्रधानमंत्री की लाहौर यात्रा एक शुभ लक्षण है। यह सुखद संयोग है कि मोदी-शरीफ भेंट क्रिसमस के शुभ दिन हुई, जिसे मोदीजी सुशासन दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं। यह भी संयोग है कि उसी दिन अटल बिहारी वाजपेयीजी का जन्मदिन था; जिनकी सलाह मोदीजी मान लेते तो राजनीति के पृष्ठों में कहां खो गए होते, नहीं मालूम। मदनमोहन मालवीय का जन्मदिन भी उसी दिन था जिन्हें अपने लोकसभा क्षेत्र को ध्यान में रखकर ही संभवत: मोदीजी ने भारत रत्न से अलंकृत किया। इन संयोगों के बीच यह संयोग भी क्या कम था कि 25 दिसम्बर को ही नवाज शरीफ का भी जन्मदिन था। उस दिन उनकी नातिन की शादी की मेहंदी रस्म भी थी। यह मानो सोने पर सुहागे वाली बात थी। नवाज शरीफ ने मोदीजी को आजकल प्रचलित परंपरा के अनुसार कोई रिटर्न गिफ्ट दिया या नहीं यह तो हम नहीं जानते, लेकिन अब मोदीजी प्रत्याशा अवश्य कर सकते हैं कि 2016 में उनके जन्मदिन 17 सितम्बर पर नवाज शरीफ एक बार फिर भारत आएंगे और रिश्ते सुधारने की दिशा में दोनों एक कदम और आगे बढ़ेंगे।
प्रधानमंत्री लाहौर क्यों उतरे इसे लेकर भांति-भांति के कयास लगाए जा रहे हैं। एक अनुमान यह व्यक्त किया गया है कि चूंकि अगले बरस सार्क सम्मेलन पाकिस्तान में होना है और उसमें श्री मोदी अवश्य जाना चाहेंगे इसलिए यह भेंट की गई। एक अन्य अनुमान में कहा गया कि भारत सुरक्षा परिषद में अपनी दावेदारी को पुख्ता करने के लिए पाकिस्तान की सहमति चाहता है। हमें ये दोनों बातें दूर की कौड़ी प्रतीत होती हैं। सार्क सम्मेलन आगामी नवम्बर में है और भारत-पाक संबंधों की वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह एक लंबा समय है। सुरक्षा परिषद में भारत का सदस्य बन पाना न तो सरल है और न तत्काल संभव। उसमें अंतरराष्ट्रीय राजनीति के बहुत से गुणा-भाग हैं। पाकिस्तान का इस मुद्दे पर भारत को समर्थन का चीन के रुख पर भी निर्भर करता है। जिस सदाशय से भारत ने चीन का साथ दिया वही सदाशय जब चीन दिखाएगा तभी भारत के लिए सुरक्षा परिषद का सदस्य बन पाना संभव है फिर इसमें ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका अथवा इजिप्त, जर्मनी, जापान के प्रवेश का प्रश्न भी जुड़ा हुआ है।
हमारा जहां तक विचार है प्रधानमंत्री मोदी को यह समझ आ रहा है कि पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारना देश की शांति और सुरक्षा के लिए पहली शर्त है। वे अगर विवादों और लंबित प्रश्नों को सुलझा पाए तो अपना नाम इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में लिखा लेने के अधिकारी हो जाएंगे। देश के हर प्रधानमंत्री ने इस दिशा में भरसक प्रयत्न किए हैं, किन्तु कहीं न कहीं जाकर बात टूटते गई। आज वैश्विक राजनीति में आर्थिक मुद्दे पहले से कहीं ज्यादा प्रभावी हो गए हैं, वित्तीय पूंजी का दखल बढ़ गया है, कार्पोरेट घराने राजनीति के माध्यम से अपना वर्चस्व बढ़ाने में लगे हैं। इन घरानों ने श्री मोदी से बहुत आशाएं बांध रखी हैं। वे अगर पाकिस्तान में नवाज शरीफ के साथ-साथ वहां के सैन्यतंत्र के साथ पटरी बैठा सके तो भारत-पाक मैत्री के रास्ते की बाधाएं दूर हो सकती हैं। इस दिशा में एक बड़ी अड़चन भारत में संघ के मनोगत को लेकर है। राम माधव का बयान इस ओर इशारा करता है। हम प्रतीक्षा करेंगे कि नए वर्ष में यह भेंट क्या रंग लाती है।
देशबन्धु में 31 दिसंबर 2015 को प्रकाशित