Sunday 6 September 2020

कविता: सरोवर हमारी धरोहर

 



दो तिहाई पृथ्वी
डूबी है जल में
इतना सारा पानी किसे
और क्यों कर चाहिये?

संदेशा भेजो वरुण को
समेट ले अपनी
सत्ता की सीमाएं
सौंप दे मनुष्य को
घोंघे, सीप, कछुए, मछलियाँ
शैवाल और प्रवाल
बढ़ रहा है आदमी का वंश
कई गुना तृष्णा उसकी
(यहाँ एक पंक्ति गायब है- लेखक)
उसे अपने लिए चाहिए

उसे चाहिए बिकिनी का द्वीप
और प्रशांत महासागर की गहराईयाँ
ताकि कर सके परमाणु परीक्षण
परख सके अपनी संहारक क्षमता

उसे चाहिए दक्षिण ध्रुव
और दक्षिण गंगोत्री के ठिकाने
ताकि कर सके वह
मौसम को अपने अनुकूल
और पेंग्विनों से
छीन सके उनका भोजन

उसे चाहिए बंगाल की खाड़ी में
बलियापाल और चांदीपुर
देश  की सुरक्षा का सवाल है
जरूरी है अग्रि का प्रक्षेपण
इसके बाद फिर आकाश का

उसे सातों समुद्रों में जगह चाहिए
पैर रखने के लिए
सैनिक ठिकाने बनाने और
दुश्मन पर निगाह रखने के लिये
दुश्मन जो उसके ही भाई हैं

वह चाहता है नरीमन पाइंट
वरली सी-फेस और मैनहट्टन
बनाएगा वहाँ ऊँची-ऊँची इमारतें
सूरज जिनकी छाया में छिप जाए
आसमान चार हाथ दूर रह जाए

इच्छा होने से
रहेगा वह हाउस बोट में
दलेगा डल झील की छाती
बनाएगा वह क्वीन एलिजाबेथ-टू
और शाही याट नेबुला
करना है उसे ऐश्वर्य का प्रदर्शन
थोड़े से दिनों की बात है
वह बसाएगा समद्र में बस्तियाँ

उसे चाहिये
रजबंधा, लेंडीतालाब और मढ़ाताल
व्यापार बढ़ गया है कितना
ज़रूरी है बनें शहर में
शाँपिंग काम्प्लेक्स और प्लाज़़ा
उसे पानी नहीं पैसा चाहिये

वह झरनों के सैट लगाएगा
तारिकाएं करेंगी जलकेलियाँ
नीबुओं की सनसनाती ताज़गी पर
बनेगी उम्दा महकती फिल्म
वह दर्शकों से तालियाँ पिटवाएगाा

उसे बनाने हैं बांध
और लगाने हैं कारखाने
नदियों के किनारे,
उसे त्रिवेणी संगम भी चाहिये
नर्मदा सागर और सरदार सरोवर से
पहँुचाएगा वह कच्छ तक पानी
ज़मीन मीन छीनेगा जिनकी, उन्हें
मुआवजा देकर खुश कर देगा
मिलों का मैल ढोएंगी नदियाँ
गाँगा सिर्फ पुरखों की
अस्थियाँ बहाने के लिये चाहिए

बुला ली हैं उसने रिग मशीनें
प्यास लगने पर बोर करवाएगा
नलकूप से खींचेगा पानी
खेतों में सिंचाई करेगा, फिर
सारा अन्न भंडार में भरवाएगा

वह चाहता है दुनिया में बचे
सिन्टेक्स की टंकी भर पानी
उसके घर की छत पर
जिसका वह खुद उपयोग करे
समुद्र, नदियाँ, सरोवर
रहें उसकी मुट्ठी में
जब जैसे चाहे प्रयोग करे

अलास्का से अंडमान तक
समुद्र में उसने लगा दी है आग
नए युग के भागीरथ ने
सुखा दी हैै सारी नदियाँ
ताल दफ्न हो गए हैं
अट्टालिकाओं के नीचे
और तब
बचाकर रखे जा रहे हैं
बहुत से पुरावशेषों की तरह
कुछ अदद जलाशय भी
राष्टीय संग्रहालयों में,
ऐलान किया गया है कि
बचाया जाएगा
बूढ़ातालाब, रानीसागर को
ये धरोहर हैं हमारी

संरक्षित स्मारक ये हमारे
बचाएंगे इनको
हर किस्म की ज्यादती से
मछलियों से कहेगे
ढूंढ़ लें कोई और घर
बचाएंगे सरोवरों को प्रदूषण से
मछुआरे  अपना जाल समेट
जी चाहे जहाँ जाएं
और धोबी हक छोड़ दें
घाट के पत्थरों पर

सुबह के धुंधलके में
खुद से शार्मिन्दा होते  हुए
न आए कोई तालाब के किनारे
पति के दफ्तर और
बच्चों के स्कूल जाने के बाद
न आएं महिलाएं
भरी दोपहर नहाने के लिये
नंग-धडंग बच्चों और
जलकुंभी को भी अब
हटाया जाएगा बार-बार

अब होगा तालाब के भीतर
विकसित एक टापू और
उसमें क्यारियाँ  फूलों की
चारों तरफ बनेगी
चौड़ी चमकती सड़क
रायपुर में होगी जैसे
बम्बई की मैरीन ड्राइव
राजनांदगांव में चौपाटी
निसर्ग की शोभा का
आनंद लेगे, मुफलिस
और श्रेष्ठिजन एक साथ,
वे अपनी कार से उतरकर
चाट और गोलगप्पे खाते हुए
ये फूलों की गंध पीकर
सिर्फ हवा खाते हुए

शाम को जल उठेंगे
मद्विम पीली रोशनी फै़लाते
सोडियम वैपर लैम्प और
चमकेंगे प्रतिष्ठानों के नियोन साइन,
घूमेंगे वहां पुलिस वाले
मालिश वाले और
कान साफ करने वाले
फुग्गे और खिलौने लेकर
आवाज़ लगाते घूमेगे फेरीवाले
सेहत सुधारते नजऱ आएंगे
कमज़ोर दिल, मोट पेट वाले
नज़रों से छुप कर सबकी
बैठेगे कहीं प्रेमी युगल
दुनिया से बेखबर
होगे और भी लोग
तरह-तरह के, किसिम-किसिम के
लेकिन इनमे से किसे पता
होगा धरोहर का महत्व
किसे होगी चिन्ता, पानी के
साफ व पारदर्शी रहने की?
ये सब आएंगे और
रात बढऩे के साथ
अपने घर लौट जाएंगे
फिर सरोवर रह जाएंगे एकाकी
जलहीन होती पृथ्वी पर
जल होने के बचे हुए सुबूत
अपने आप में डरे हुए
कल उन्हें भी
बेच दिया जायगा
पाँच पैसा गिलास एक रुपया बाल्टी
सौ रुपया टैंकर के हिसाब से

ऐसी किसी रात के
अंधेरे में सक्रिय होगा
शताब्दियों से सहमा वरूण
दसों दिशाओं में
भेजी जायेंगी पोशीदा खबरें
होगी जवाबी हमले की तैयारी
पाताल में कछुए कसमसाएंगे
और आकाश में तड़पेंगी बिजलियाँ
टूट के बरसेंगे बादल
और सूखी हुई सरिताओं में
एकाएक आएंगे उफान
झीलें तोड़ देंगी अपनी हदें
और समुद्रों में उठेंगी लहरें
सीयर्स टावर्स से ऊँची,
एक बार फिर होगा महाप्रलय

तब क्या करेगा मनुष्य
कहाँ जाएगा वह
क्या काम आएंगे अस्त्र और शस्त्र
परमाणु बम और मिसाइलें
किसी ढहती इमारत की
एक सौ बीसवीं मंजि़ल पर
खड़ा होगा जब वह
जिंदा रहने की फिराक में
तब क्या होगा उसके पास
एक अदद नौका भी
खुद को बचाने के लिये?


1990







No comments:

Post a Comment