नया साल 2015 दहलीज तक आ पहुंचा है।
दुनिया में सब तरफ अपने-अपने तरीके से नववर्ष के स्वागत की तैयारियां चल
रही हैं। जिनके पास साधन सुविधा है वे अपने घरों से दूर नए-निराले ठिकानों
पर पहुंच कर नए साल की खुशियां मनाने पहुंच गए हैं। इसके लिए कई-कई हफ्तों
पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं। जिन्हें ऐसे अवसर मुहैय्या नहीं है वे
भी घर में या घर के आस-पास कहीं नया साल मनाएंगे ही। 31 दिसम्बर की रात को
खूब चहल-पहल होगी। ठीक आधी रात को गिरजाघरों की घंटिया बजेंगी। 2014 अपनी
पीठ पर 365 दिनों की गठरी लाद कर चुपचाप इतिहास के पन्नों में विलीन हो
जाएगा और नयी आभा, नयी चमक, नए उल्लास के साथ 2015 के लिए सारे दरवाजे खुल
जाएंगे कि आने वाले वर्ष में सब कुछ अच्छा ही अच्छा हो। एक जनवरी को भारत
के करोड़ों लोग मंदिरों, इबादतगाहों, गुरुद्वारों और चर्चों में जाएंगे,
हृदय में यही प्रार्थना लिए कि आने वाले वर्ष में कोई त्रासदी न घटे, किसी
दु:स्वप्न का सामना न करना पड़े। यह बात अच्छी लगती है कि अपनी परंपरा के
अनुसार हमारा नववर्ष जब भी शुरू होता हो, इस विश्वव्यापी नववर्ष को भी हम
पूरी उमंग के साथ मनाते हैं।
1 जनवरी एक शुभदिन है। ऐसे शुभ दिनों पर हम नए संकल्प लेते हैं ताकि आने वाले दिनों में अशुभ की छाया से बच सकें। नववर्ष पर एक दूसरे को बधाईयां और शुभकामनाएं देने की भी परंपरा है। आप सबको मंगलमय 2015 की बधाई देते हुए अनुरोध करने का मन है कि एक सुखद भविष्य की आकांक्षा लिए आज हम प्रचलन से हट कर एक नया संकल्प लें। कितना अच्छा हो कि एक जनवरी को हम तय करें कि हम भारतवासी अपने संविधान की रक्षा करेंगे। एक भारतीय नागरिक को यह मानने में कोई संकोच या दुविधा नहीं होना चाहिए कि संविधान हमारा सबसे पवित्र ग्रंथ है और इसके अनुकूल आचरण करने में ही हमारी शान है। संभव है कि अपनी रूढिय़ों से जकड़े जनों को यह बात एकाएक समझ न आए। इसलिए इसका खुलासा कर देना उचित होगा।
मनुष्य जीवन में सबसे बहुमूल्य वस्तु अगर कोई है तो वह है स्वतंत्रता ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जो खुशी-खुशी किसी का दास बनना चाहता हो या जिसे स्वतंत्रता प्यारी न हो। मनुष्य ही क्यों, संपूर्ण प्राणी जगत के बारे में यह बात सच है इसीलिए हमारे कवियों ने पशु पक्षियों की परतंत्रता पर भी आंसू बहाए हैं। कवि प्रदीप ने लिखा था-
''पिंजरे के पंछी रे, तेरा दरद न जाने कोए।"
उनके भी पहले सैय्यद अमीर अली 'मीर' ने कविता लिखी थी-
''मैना तू बनवासिनी, पड़ी पींजरे आन।"
स्वतंत्रता अनमोल है इसे भारतवासियों से बेहतर और कौन जान सकता है क्योंकि एक सौ नब्बे साल तक (1757 से 1947) गुलामी का जुआ हम अपने कंधों पर ढोते रहे हैं। मनुष्य की स्वतंत्रता और भारत के संविधान के बीच एक अटूट रिश्ता है क्योंकि जिन लोगों ने देश को आजाद करने के लिए अनगिनत तकलीफें उठायीं, कुर्बानियां दीं, उन्हीं ने हमें स्वतंत्र भारत का संविधान भी दिया।
आज यदि हम अपने संविधान का सम्मान करने में कहीं चूकते हैं तो इसका एक सीधा अभिप्राय यह होता है कि हम अपने संविधान निर्माताओं, जो कि स्वाधीनता संग्राम के अग्रनायक भी थे, की स्मृति का अपमान कर रहे हैं। आज यदि भारतीय खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं तो यह अवसर हमें अपने संविधान ने ही दिया है। इसे एक और कसौटी पर देखना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यह विश्व का सर्वश्रेष्ठ संविधान है। ऐसा इसलिए है क्योंकि संविधान निर्माताओं ने इसकी रचना करते समय एक ओर जहां भारत की हजारों साल पुरानी उदारवादी पंरपराओं में जो कुछ श्रेष्ठ व ग्रहण करने योग्य था उसे लिया, तो दूसरी तरफ विश्व के अन्य देशों से एक आधुनिक समाज गढऩे के लिए जो विचार लिए जा सकते थे उन्हें स्वाकार करने से परहेज नहीं किया। कहना होगा कि हमारी सविधान सभा किसी ब्रह्मा से कम नहीं थी।
भारत का संविधान मनुष्य मात्र की गरिमा का सम्मान करता है, न्यायपथ पर चलने का निर्देश देता है, लोक व्यवहार में उदार बनने के लिए प्रेरित करता है और आधुनिक विश्व में प्रभावशाली भूमिका निभाने का अवसर देता है। कुल मिलाकर वह हमें अपनी जड़ता से मुक्त करता है। हमारे अपने निजी धार्मिक विश्वास हो सकते हैं, लेकिन भारतीय संविधान उन्हें एक वृहतर उदात्त मनोभूमि पर स्थापित करता है। नए साल पर इससे बढ़कर संकल्प भला और क्या हो सकता है कि हमारा जीवन संविधान की मर्यादा के अनुरूप व्यतीत हो।
1 जनवरी एक शुभदिन है। ऐसे शुभ दिनों पर हम नए संकल्प लेते हैं ताकि आने वाले दिनों में अशुभ की छाया से बच सकें। नववर्ष पर एक दूसरे को बधाईयां और शुभकामनाएं देने की भी परंपरा है। आप सबको मंगलमय 2015 की बधाई देते हुए अनुरोध करने का मन है कि एक सुखद भविष्य की आकांक्षा लिए आज हम प्रचलन से हट कर एक नया संकल्प लें। कितना अच्छा हो कि एक जनवरी को हम तय करें कि हम भारतवासी अपने संविधान की रक्षा करेंगे। एक भारतीय नागरिक को यह मानने में कोई संकोच या दुविधा नहीं होना चाहिए कि संविधान हमारा सबसे पवित्र ग्रंथ है और इसके अनुकूल आचरण करने में ही हमारी शान है। संभव है कि अपनी रूढिय़ों से जकड़े जनों को यह बात एकाएक समझ न आए। इसलिए इसका खुलासा कर देना उचित होगा।
मनुष्य जीवन में सबसे बहुमूल्य वस्तु अगर कोई है तो वह है स्वतंत्रता ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जो खुशी-खुशी किसी का दास बनना चाहता हो या जिसे स्वतंत्रता प्यारी न हो। मनुष्य ही क्यों, संपूर्ण प्राणी जगत के बारे में यह बात सच है इसीलिए हमारे कवियों ने पशु पक्षियों की परतंत्रता पर भी आंसू बहाए हैं। कवि प्रदीप ने लिखा था-
''पिंजरे के पंछी रे, तेरा दरद न जाने कोए।"
उनके भी पहले सैय्यद अमीर अली 'मीर' ने कविता लिखी थी-
''मैना तू बनवासिनी, पड़ी पींजरे आन।"
स्वतंत्रता अनमोल है इसे भारतवासियों से बेहतर और कौन जान सकता है क्योंकि एक सौ नब्बे साल तक (1757 से 1947) गुलामी का जुआ हम अपने कंधों पर ढोते रहे हैं। मनुष्य की स्वतंत्रता और भारत के संविधान के बीच एक अटूट रिश्ता है क्योंकि जिन लोगों ने देश को आजाद करने के लिए अनगिनत तकलीफें उठायीं, कुर्बानियां दीं, उन्हीं ने हमें स्वतंत्र भारत का संविधान भी दिया।
आज यदि हम अपने संविधान का सम्मान करने में कहीं चूकते हैं तो इसका एक सीधा अभिप्राय यह होता है कि हम अपने संविधान निर्माताओं, जो कि स्वाधीनता संग्राम के अग्रनायक भी थे, की स्मृति का अपमान कर रहे हैं। आज यदि भारतीय खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं तो यह अवसर हमें अपने संविधान ने ही दिया है। इसे एक और कसौटी पर देखना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यह विश्व का सर्वश्रेष्ठ संविधान है। ऐसा इसलिए है क्योंकि संविधान निर्माताओं ने इसकी रचना करते समय एक ओर जहां भारत की हजारों साल पुरानी उदारवादी पंरपराओं में जो कुछ श्रेष्ठ व ग्रहण करने योग्य था उसे लिया, तो दूसरी तरफ विश्व के अन्य देशों से एक आधुनिक समाज गढऩे के लिए जो विचार लिए जा सकते थे उन्हें स्वाकार करने से परहेज नहीं किया। कहना होगा कि हमारी सविधान सभा किसी ब्रह्मा से कम नहीं थी।
भारत का संविधान मनुष्य मात्र की गरिमा का सम्मान करता है, न्यायपथ पर चलने का निर्देश देता है, लोक व्यवहार में उदार बनने के लिए प्रेरित करता है और आधुनिक विश्व में प्रभावशाली भूमिका निभाने का अवसर देता है। कुल मिलाकर वह हमें अपनी जड़ता से मुक्त करता है। हमारे अपने निजी धार्मिक विश्वास हो सकते हैं, लेकिन भारतीय संविधान उन्हें एक वृहतर उदात्त मनोभूमि पर स्थापित करता है। नए साल पर इससे बढ़कर संकल्प भला और क्या हो सकता है कि हमारा जीवन संविधान की मर्यादा के अनुरूप व्यतीत हो।
देशबन्धु सम्पादकीय 30 दिसंबर 2014
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