Tuesday, 18 August 2020

समय का स्वप्न

 


इतना लंबा समय कि

माँ के कमरे में रखी,

दादी के साथ आई 

गोदरेज की आलमारी

विज्ञापन में दिखने लगे;


इतना लंबा समय कि

रसोईघर में

मसाले से लेकर वनस्पति तक

हर सामान का ब्राँड

चार बार बदल जाए;


इतना लंबा समय कि

बेटे की उदासी देखी न जाए,

और नए मॉडल की कार

दरवाज़े पर आ खड़ी हो जाए;


इतना लंबा समय

और ऐसा समय कि

लेखक और कलाकार के पास

सिर्फ स्त्रियों के संस्मरण रह जाएं,

कविता में प्रकृति

पोस्टर के अंदाज़ में प्रवेश करे,

विवशता अख़बारी फोटो की मानिंद,

और देहराग अंतिम सच हो जाए;


इतना लंबा समय और

ऐसा समय कि

रात की ख़बरों का अंत

तूफ़ान की चेतावनी के साथ हो,

और बिना चेतावनी

तूफ़ान के साथ शुरू

हो हर नई सुबह;


ऐसा समय कि

बस्ती में दिखें तो

सिर्फ उजड़े हुए घर और

सड़कों पर मिलें

सिर्फ उखड़े हुए वृक्ष,

रास्ते तो नज़र आएं

वही पुराने परिचित लेकिन

रास्तों के अवरोध हों सारे

नए और अपरिचित;


ऐसा समय कि

गंतव्य अब भी हो

उतनी ही दूर, लेकिन

पहुंचने में लगे

पहिले से ज्य़ादा समय;


इतना लंबा समय कि

घर शायद वही हो लेकिन

बदल गया हो घर का पता,

या पता तो वही हो

लेकिन बदल गए हों

घर में रहने वाले भी,

टेलीफोन नंबर के साथ;


इतना  लंबा समय और

ऐसा समय कि

घर ढूंढना हो मुुश्किल, 

पता पूछना कहीं ज्य़ादा कठिन,

घर जिनके छूट गए हों

उनकी कोई ख़बर

मिलना हो जाए असंभव;


इतना लंबा समय कि

संबंधों के प्रयोजन खो जाएं,

संबोधन अपना सार खो बैठें

और वचन अपनी सार्थकता,

फिर भी सब कुछ

वैसा ही चलता रहे,

न कोई फ़िक्र हो

न रंज, न मलाल;


इतना लंबा समय कि

जल्दी किसी बात की न हो 

हर प्रश्न का, आराम से

दिया जा सकता हो उत्तर,

अशेष हों विकल्प और

संभावनाएं अपार हों,

जीवन में बस

फल की ही कामना हो 

और हर चैनल  पर

प्रस्फुटित होता हो।


24.10.2000

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