Sunday, 30 August 2020

कविता 1) स्वाति जल 2) दोस्ती

 स्वाति जल


अफसर के आने का

इंतज़ार है लोगों को,

उमस भरे दिन में 

ठंडी बयार का,


अफसर की तरह

इतराई हुई है शाम,

दिवस की तरह

कुम्हलाए हुए हैं लोग,


अफसर की तरह

खिले हुए हैं फूल,

पत्तियों की तरह

बिछे हुए हैं लोग, 


अफसर की तरह 

अफसर के लिए 

सजी हुई हैं टेबलें,

जूठन की तरह

जूठन के लिए 

गिरे पड़े हैं लोग, 


चल चुके हैं अफसर

आते ही होंगे, 

पानी के टैंकर पर

टूटेगी भीड़,

हर चातक को मिलेगा 

दो बूंद स्वाति जल, 


क्षुद्र जीवन में भला

और क्या चाहिए?


13-06-2000


दोस्ती


उन्होने बताया कि

फलाँ-फलाँ अफ़सर से

उनकी गाढ़ी दोस्ती है,


वे फलाँ-फलाँ वक्त मेंं

यहाँ हुआ करते थे,

और अब भी जहाँ हैं

मेल-मुलाकात

पहिले जैसी ही है,


अफसरों की दोस्ती में

बहुत से आराम हैं,

बहुत सा आनंद,

अफसरों को भी

दोस्तों को भी,


दोस्ती के बहुत से

किस्से उनके पास थे,

कुछ बतकही में

खास लोगों के लिए,

कुछ लिखे हुए संस्मरण

बचे लोगों के लिए,


जिन्होने पढ़े-सुने वे किस्से

उनमें से कुछ को

अपनी नाकाबिलियत पर

शर्म आई,

कुछ को

दोस्तों की किस्मत से

रश्क हुआ,

कछ ने कहा

नसीब वालों को 

होती है नसीब

अफसरों की दोस्ती,

ज्य़ादातर के लिए थीं

ये सारी बातें

चंबल के बीहड़ों की तरह

अगम्य और अबोध्य,


इन्हीं में से किसी ने

अपने क्षुद्र जीवन पर

तरस खा सोचा-

काश! उसे

चंबल के डाकू ही

साथ ले जाते।


15.06.2000

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