Thursday, 15 October 2020

कविता: उठो जापान

 


कोमोरी कोको


वह सामने के दरवाजे से नहीं आता

और न दरवाजे की घंटी बजाता

जब पिता हों व्यस्त अपने व्यापार में,

और माँ बस इतना कहे कि बच्चो पढ़ो,

जब बच्चे खो बैठें दोस्तों को

भूल जाएं आपस की एकता,

मन हो उठे उनका उद्विग्न, और

हिरा जाए सोचने की  क्षमता,

जब घर के गुलशन में

बाकी न बचे रिश्तों की महक,

तब धीरे से अपने

बीज बो देता है फासीवाद,


वह आता है मुस्कान के साथ,

बच्चों की पत्रिकाओं और खिलौनों के साथ

 माँ, नाराज क्यों होती हो

ये तो सिर्फ खिलौने हैं 

जब ऐसा कहने लगें बच्चे, और

जमा होती रहें प्लास्टिक की पिस्तौलें, मॉडल

जब स्कूल की सामग्री पर भी

छपी हों युद्ध की तस्वीरें, कहानियां

पेंसिल का इस्तेमाल हो मिसाइल की तरह,

उडऩे के लिए तैयार वह आता है

वह आता है विजेता की मुद्रा में

बच्चो! पुलिस से सहयोग करो,

अपराध से दूर रहो,

अच्छी- अच्छी बातें सीखो और करो,

अच्छा है, बन जाओ स्काउट और

बेहतर होगा, कि बाद में

फौज में शामिल हो जाओ


कहता है वह इस तरह,

हमें जरुरत है नैतिक शिक्षा की,

साम्राज्य की शिक्षा नीति थी उत्तम,

बच्चों को पढ़ाना है बेहद जरुरी

कि यह है परिवार की जिम्मेदारी,

और इस तरह

माता-पिता की चिंताएं ओढ़कर

आ जाता है फासीवाद,


बोलने की आज़ादी

खत्म नहीं होती एकाएक,

दसियों बरस लगते हैं

झूठ को सच बनाने में कि

हमें आण्विक हथियार नहीं चाहिए,

कि यहां हथियारों के आयात पर है प्रतिबंध

कि सिर्फ अमेरिका को है इसमें छूट,

कि इस तरह छुपा लिया जाता है सच

अगर हम छापे के अक्षर को

देख सकते हैं साफ-साफ तो

कोशिश करें कि हम

सच को भी देख पाएं साफ-साफ

कि हमारी पथराई आंखें,

रोजमर्रा की जिंदगी से मुर्झाई आंखें

उन्हें खोलें सुबह की रौशनी की तरह,

कि हमारी नाक सूंघ सके फासीवाद को,

और हमारे शब्द हों प्रबल और निर्भीक

कि रोक सकें फासीवाद को,

कि विवेक के ये शब्द गहरे  घंस जाएं

जनता के हृदय में,


अभी ही है समय हमारे लिए

कि प्यार और जिंदगी के 

बारे में सोचें,

अभी ही है समय हमारे लिए

कि समझ लें अपनी जिम्मेदारी,

बचा लें जापान की शांति

और दुनिया का सुखचैन,

अभी ही है समय हमारे लिए

कि हम फैसला लेने तत्पर हों,

कि सच की आंखें में निर्भय झांकें

और बेहिचक कहें सही-सही बात,


उठो जापान

तैयार करो अपने आप को

और जल्दी करो

कि कहीं फिर पछताना न पड़े।


मूल जापानी- कोमोरी कोको

(Komori Koko)

अंग्रेजी रूपांतर- मिसाको हिमेनो

हिंदी रूपांतर- ललित सुरजन

( whom we say Hiroshima 1999 से साभार)

1 comment: