Monday 13 July 2020

कविता: गैर सरकारी प्रस्ताव




वह जिसे कि
अकेला खड़ा किया है
अदालत में
उसकी भी बात सुनी जाए
या यही है उसका अपराध कि
वह अकेला क्यों रहा
अब तक,
तो कोई जिरहकर्ता जवाब दे
कि उसका साथ
बार बार क्यों छीना
व्यवस्था के प्रहरियों ने

वहाँ एक जीवित रूखापन था
और उसे भिगाने की कोशिश में
कुछ लहरों ने अपने को
बादल बना उड़ा दिया उस ओर
लेकिन किसी टेबिल पर पड़े
ब्लाटिंग पेपर ने सोख लिया
सारा जल और सारा गर्जन-तर्जन
बादल बहुत नम्र हो आए और
दुबारा लहर बनने की कामना
लिए नजदीकी नदी में उतर पड़े
टेबिल पर झुका हुआ एक चेहरा था
जिसने बड़े इत्मीनान से
ब्लाटर को निचोड़ा और
लाल हो गये जल का
पचास प्रतिशत पी लिया
शेष को थर्मस में भर
वह उस चट्टान की ओर चल पड़ा
जहाँ से रूखापन खिसक  कर
नदी में डुबकी लगाना
चाह रहा था

सुबह की जिस किरण ने
उसे अपने कंधों पर लादा था
उसे एक पूरे दस्ते ने
अपनी संगीनों से बींध दिया,
और चट्टान पर पछाड़ दिया
सहमे हुए रुखेपन को
सागर के मुहाने पर
बैरियर लगा
नदियाँ रोक ली गईं और
हर संदिग्ध मछली का
पेट चीरा गया जिनमें
उड़ी हुई  लहरें
छिपी चली आ रही थीं,
लेकिन अब वहाँ जैसे
किसी बहुत अपने की मौत पर
बहता हुआ एक खारापन था
और दूर एक व्याकुल कोशिश
जिसने थर्मस के लाल जल को
पीने से इन्कार कर दिया
और खारापन अपनी अंजुरी में भर
चेहरा  ढाँप लेना चाहा
लेकिन बेअसर यह सब
ट्रिब्यूनल इसे नहीं सुनेगा, ढोंग यह सब
ट्रिब्यूनल न्याय का पुरस्कर्ता है
लेकिन अन्याय के खिलाफ
हर गैर-सरकारी प्रस्ताव दण्डनीय है।

1966

               

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