Thursday, 30 July 2020

कविताएं: 1 पेड़ों की ताकत 2 नमकहलाल 3 मायाजाल

पेड़ों की ताकत

नदी की रेत पर बैठे
पास उस झाड़ी की
ओट से झाँकता वह
दूर का सितारा
पहाड़ी सड़क पर
मोड़-दर-मोड़ गुजरती
बत्तियां ज्यों किसी ट्रक की

एक झाड़ी और फिर
उससे बनता हुआ झुरमुट
जिसने सितारे अपनी
हथेलियों में थाम
रेत पर लुढ़का दिए
रोशनी नाव बनकर
पानी की सतह पर तैर आयी

सितारे, जुगनू, हेडलाईट
जंगल की शिराओं में दौड़ते हुए
कि काली चट्टानों के मुखालिफ
रोशनी ट्रक के कन्धों पर सवार
पत्तियों-डालियों के होठों पर
लौटती सहज मुस्कान

झडिय़ों से झुरमुट, फिर
झुरमुटों से जन्म लेता जंगल
बार बार जिसे
नीलाम करने की कोशिश
कि जंगल के पेड़
जड़ से फुनगी तक
दरवाजे-चौखट--खंभे-खिड़की बनें
मालिक के इशारे पर
खड़े-आड़े, खुलते-बंद होते रहें

कलकत्ता की बस
बम्बई की रेलगाड़ी
भिलाई का पावरहाउस
रायपुर का कुन्दरापारा
हर जगह जहाँ
जंगल को तोड़ने की कोशिश
रोशनी रह-रहकर चमकती है।

किसी झाड़ी की ओट से
कभी बादलों को चीर कर
कभी सड़क के मोड़ पर
या छप्पर की सेंध से
कि पेड़ अपने पांवों में
नई ताकत महसूस कर लें
जमीन के नीचे तक धँसी
जड़ों से फिर फिर
उठ खड़े होने के लिए

1978

नमकहलाल

ट्रक पर लदे हुए लोग हैं
लोग आदिवासी हैं

निगम की बस है
बस लाल डिब्बा है
कितना लम्बा सफर है
सतपुड़ा के जंगल हैं
नर्मदा की घाटी है
टेसू की आग है
सागौन की छाया है
इतना लम्बा सफर है
सफर कट तो जायेगा ही

प्रायवेट बस है
ज्यादा दूर नहीं चलती
घाटे में नहीं चलती
रास्ते में नहीं बिगड़ती
ठेंगा दिखाती है
प्रायवेट बस है
उनका सिंहासन है

लोग आदिवासी हैं
बाकी भी कहीं के निवासी हैं
ट्रक उनका रथ है
निगम बस पुष्पक है
कितने अच्छे सारथी
मजे की सवारी है
सड़क के बायीं ओर
ट्रक से उतरे हुए
ट्रक में चढ़ने के लिए
चलते हुए लोग हैं

लोग आदिवासी हैं
लोग श्रवण कुमार हैं
कन्धे पर काँवर है
काँवर में लकड़ी है
तेंदू है, महुआ है
आम के टिकोरे हैं

काँवर खाली है
कंधे पर पोटली है
पोटली में नमक है
नमक खरीदकर लाये हैं
हुजूर का अहसान है

आदिवासी श्रवणकुमार है
लोग नमकहलाल हैं।

1976


मायाजाल

मुट्ठी भर चावल की कीमत
श्लोक भर संस्कृत,
गुरुजी थोक के भाव श्लोक बेचते हैं
या मुट्ठी में भर-भर
अक्षत मन दिमाग निचोड़ते हैं

गुरुजी हों या बाबा
उधर कंठी इधर माला,
कंठी के मनके
बाबा की अँगुलियों पर सरकते हैं,
ज्यों-ज्यों दक्षिणा के थाल में
रुपए-नोट-सिक्के गिरते हैं, खनकते हैं

मनकों का अंकगणित
रामनाम-नोटों की गिनती-भक्तों की संख्या,
रामजी मन्दिर में
नोट थाली से तिजोरी में
भक्त जंगल से श्रीचरणों में
भक्त भले-भोले, उन के
होठों पर श्लोक गोया
आटे में रेत
दिमाग में मसीहा, याने
बालों में जूं,

भक्त वह सागौन तन
जो सतपुड़ा की चोटी पर तना
गुरुजी के पैरों
 
क्यों कर डालियों  झुका?
भक्त वह जंगल मन
आकाश भुज भेंटने का संकल्प
बाबा के आश्रम पहुँच कैसे रुका? 
भक्त-
काँवर खाली ही सही
कंधे पर उठा,
हथेलियाँ खुली हैं 
उलीच दे श्लोक,
पूजा के फूल, 
मसीहा के नाम
दोस्त ! हथेली बंद कर कि
मुटठी में तेरी जकड़ी हुई कुल्हाड़ी हो ।


1978



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