नागपुर से भोपाल तक
मध्यप्रदेश में मायाराम सुरजन संभवत: एकमात्र ऐसे पत्रकार थे जिन्हें पूरे प्रदेश के राजनैतिक इतिहास व भूगोल का ज्ञान था। उन्होंने नागपुर से पत्रकारिता शुरू की तो उस दौरान विदर्भ को नजदीक से जाना समझा। इसी दौरान उन्होंने छत्तीसगढ़ की राजनीति का भी निकट से परिचय प्राप्त किया। वे जब जबलपुर आए तो महाकौशल को तो स्वाभाविक रूप से उन्होंने देखा ही, विंध्य प्रदेश से भी वे परिचित हुए क्योंकि जबलपुर नवभारत का प्रसार पूरे विंध्य प्रदेश में था। जबलपुर में रहते हुए ही 1952 में उन्होंने नवभारत का भोपाल संस्करण प्रारंभ किया तथा नया राज्य बनने के बाद 1956 में वे भोपाल चले गए। इस अवधि में उन्होंने मध्यभारत की राजनीति का भी गहन अध्ययन किया। अपने इस ज्ञान और अनुभव के बलबूते ही वे मध्यप्रदेश के राजनीतिक इतिहास पर ''मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश के'' जैसी पुस्तक लिख सके।
इस तथ्य का उल्लेख करना आवश्यक है कि 1945 में बाबूजी ने पत्रकार के रूप में नहीं बल्कि विज्ञापन विभाग में एक क्लर्क के रूप में अपने कर्मजीवन की शुरूआत की थी। उनकी सहज रुचि पत्रकारिता में थी इसलिए वे संपादकीय विभाग की कार्यप्रणाली का भी साथ-साथ अध्ययन करते रहे। यही नहीं उन्होंने व्यवस्था विभाग के अन्य पहलुओं को भी बारीकी से जाना। यह उनकी कार्यकुशलता व लगन का ही परिणाम था कि रामगोपाल माहेश्वरी ने जब जबलपुर से नवभारत प्रारंभ करने का निर्णय किया तो बाबूजी को व्यवस्था का प्रभार देकर जबलपुर भेजा। जबलपुर संस्करण के पहले संपादक कुंजबिहारी पाठक अक्खड़ प्रवृत्ति के थे, जिनके लिए कार्यालय के अनुशासन में बंधना संभव नहीं था इसलिए बहुत जल्दी, छह-आठ माह के भीतर ही बाबूजी को संपादक एवं व्यवस्थापक दोनों प्रभार एक साथ संभालना पड़े। यह संभवत: वह बिन्दु है जहां उन्हें अपने मनचाहे क्षेत्र में काम करने का अवसर उन्हें मिला। इस अवधि में राजनीति, कला, साहित्य, शिक्षा, खेल इत्यादि तमाम क्षेत्रों में उनके परिचय विकसित हुए। हरिशंकर परसाई, अजय चौहान व हनुमान प्रसाद वर्मा जैसे सुख-दु:ख के साथी उन्हें इस दौरान मिले। अपने सहयोगियों के रूप में उनके साथ श्यामसुन्दर शर्मा, रघुनाथप्रसाद तिवारी, हीरालाल गुप्त,श्यामबिहारी पटेल व प्रेमशंकर धगट इत्यादि पत्रकार जुड़े जिन्होंने आगे चलकर पत्रकारिता अथवा जनसंपर्क में यश अर्जित किया।
भोपाल से उन दिनों कोई अखबार नहीं निकलता था। नवभारत के विस्तार के लिए बाबूजी ने इसे उपयुक्त अवसर समझा तथा1952 में टेबलायड आकार में नवभारत का भोपाल में प्रकाशन शुरू हुआ। प्रखर पत्रकार प्रेम श्रीवास्तव इसके स्थानीय संपादक बने। संभवत: माहेश्वरी जी के मन में यह कल्पना थी कि उनके तीनों पुत्रों के पास अपना एक-एक स्वतंत्र प्रभार हो तथा इसी से प्रेरित होकर भोपाल की यह पहल हुई। उस समय किसी को कल्पना नहीं थी कि नया मध्यप्रदेश बनेगा और भोपाल उसकी राजधानी होगी। दरअसल जब राज्य पुनर्गठन का फैसला अंतिम रूप से हो गया तब जबलपुर को राजधानी बनाने के आंदोलन में बाबूजी ने बहुत सक्रियता के साथ भाग लिया व अग्रणी भूमिका निभाई। यद्यपि इस आंदोलन का कोई वांछित परिणाम नहीं मिला। जब तय हो गया कि राजधानी भोपाल में बनेगी तो भोपाल के टेबलायड आकार को संपूर्ण समाचार पत्र का रूप देने में बाबूजी जुट गए। जबलपुर कार्यालय से चुने हुए लोगों की एक टीम इस कार्य को अंजाम देने भोपाल गई।
उस समय तक भोपाल नवभारत इब्राहिमपुरा मोहल्ले में एक किराए के मकान में स्थापित था। कांग्रेस नेता लाला मुल्कराज की इस कोठी में पहली मंजिल पर ट्रेडल मशीन लगी थी जिस पर पेपर छपता था। 1956 में जहांगीराबाद में किराए का एक बड़ा मकान ढूंढा गया और प्रेस वहां चला गया। इब्राहिमपुरा का घर हमारा निवास बन गया। नीचे दरवाजे पर बाबूजी के नाम की जो तख्ती लगी थी वह वहां लगभग पचास साल तक लगी रही। लाला जी अथवा उनके बाद उनके बेटों ने इस नेमप्लेट को शायद स्नेह के वशीभूत होकर नहीं हटाया। कुछ माह बाद ही बाबूजी ने जहांगीराबाद के किराए के मकान को खरीदने का विचार किया और यह सौदा पक्का हो गया। मुझे अच्छी तरह स्मरण है कि 1957 में दशहरे के दिन नवभारत के अपने भवन में गृहप्रवेश का कार्यक्रम रखा गया। इसके लिए बाबूजी नागपुर से माहेश्वरी जी के सबसे छोटे पुत्र श्री विनोद को कार से भोपाल लाए। इस यात्रा में मैं और नागपुरवासी मेरी बुआजी के बेटे अनुपम भैया भी साथ में थे। नागपुर से भोपाल तक की सड़क उस समय कैसी रही होगी, पाठक इसकी कल्पना कर सकते हैं। सुबह के निकले हम शाम छह-सात बजे नर्मदा पार कर बुधनी पहुंचे और उसके आगे कच्ची सड़क पर रास्ता भटक गए। दो तीन घंटे बाद किसी तरह सही रास्ते पर लौटे। गांव के रिश्ते से विनोद बाबूजी को मामाजी कहते थे। अनुपम भैया तो भांजे थे ही। इसीलिए बाबूजी ने पुरानी कहावत को याद किया कि मामा-भांजे को एक नाव में कभी साथ नहीं बैठना चाहिए।
1957 में ही मध्यप्रदेश की पत्रकारिता के इतिहास में मायाराम सुरजन ने एक नया अध्याय जोड़ा। उन्होंने नए प्रदेश की राजधानी से अंग्रेजी का पहला समाचार पत्र निकालने की योजना बनाई। माहेश्वरी जी ने प्रारंभ में इसमें रुचि नहीं दिखाई लेकिन वे अंतत: राजी हुए तथा भोपाल से मध्यप्रदेश क्रॉनिकल का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। उन दिनों भोपाल एक बहुत छोटा शहर था- नए मध्यप्रदेश के बड़े शहरों में पांचवें क्रम पर। अंग्रेजी पत्र के लिए संपादक मिलना मुश्किल था। बाबूजी ने नागपुर में अपने दो मित्रों के.पी. नारायणन और शिवराज सिंह से संपर्क किया जो क्रमश: हितवाद और नागपुर टाइम्स में काम कर रहे थे तथा उन्हें अपने साथ भोपाल आने के लिए राजी किया। श्री नारायणन इस पहले अंग्रेजी पत्र के संपादक बने। बाबूजी समूह के महाप्रबंधक थे, लेकिन अपने से उम्र में बड़े नारायणन साहब को उन्होंने हमेशा आदर दिया और जरूरत पड़ने पर उनके केबिन में जाकर ही उनसे बातचीत की।
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