मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना
अन्ना हजारे के अनशन को लेकर जो वातावरण बना, उसमें दो दिलचस्प बातें दिखीं। एक तो देश में गांधी टोपी जैसे वापिस लौट आई, दूसरे एक नया नारा उछल गया- ''मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना।''
यह नारा अन्ना के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए गढ़ा गया है। मैं अन्ना के आन्दोलन का समर्थन नहीं करता, लेकिन इस नारे को सुनने के बाद मैंने सोचना शुरू किया कि यदि मैं अन्ना होता तो क्या करता! पहली बात तो मन में यही आई कि यदि आप किसी आन्दोलन का समर्थन कर रहे हैं तो उसके लिए सिर्फ नारे लगाना या फिर एसएमएस, फेसबुक, टि्वटर पर संदेश भेजना पर्याप्त नहीं है। कैसा भी आन्दोलन हो वह कुछ न कुछ त्याग तो मांगता ही है। इस नाते यदि मैं अपने आपको अन्ना कहने का हकदार समझता तो सिर्फ नारे नहीं लगाता बल्कि कुछ आगे बढ़कर सक्रिय होता।
मैं अगर अन्ना होता तो मेरी सक्रियता कब-कब और कहां-कहां होती, इस पर आत्ममंथन करते हुए बहुत से बिन्दु उभरकर सामने आए जिन्हें मैं पाठकों के सामने रख रहा हूं-
1. यदि मैं अन्ना होता तो 2002 में गुजरात जाकर अनशन करता और नरेन्द्र मोदी से मांग करता कि अटल बिहारी वाजपेयी की सलाह पर राजधर्म का पालन कर वे मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़ दें।
2. मैं 2003 में बंगलुरू जाकर अनशन करता कि देवेगौड़ा पिता-पुत्र ने भारतीय जनता पार्टी के साथ जो अपवित्र गठबंधन किया है वह मुझे स्वीकार नहीं है, कि कुमार स्वामी गलत रास्ते से मुख्यमंत्री बने हैं और भाजपा में उनका साथ देकर गलती की है। मैं उसी समय कर्नाटक में मध्यावधि चुनाव करने की मांग करता।
3. मैं 2004 में दिल्ली में अनशन करता कि देश को मनोनीत नहीं, बल्कि निर्वाचित प्रधानमंत्री चाहिए और मैं डॉ. मनमोहन सिंह से छह माह के भीतर लोकसभा चुनाव लड़ने की मांग करता।
4. मैं लाभ का पद वाले मामले में सोमनाथ चटर्जी से मांग करता कि वे भी सोनिया गांधी का अनुसरण करें और फिर से चुनाव लड़ने का साहस दिखाएं। मैं अनशन कर उनसे लोकसभा का अध्यक्ष पद छोड़ने के लिए कहता।
5. मैं शरद पवार के घर के सामने अनशन करता कि या तो वे कृषि मंत्री का पद छोड़ें या क्रिकेट बोर्ड की अध्यक्षता।
6. इसी तरह अन्य राजनेताओं का भी खेलसंघों पर नियंत्रण समाप्त करने का आह्वान करता।
7. मैं अनशन करता कि लाभ के पद की परिभाषा यथावत रखी जाए और राजनेताओं को दोहरा लाभ लेने से रोका जाए।
8. मैं इस बात पर अनशन करता कि राज्यसभा में राज्य के लोगों को ही चुना जाए और प्रभावशाली लोगों को चोर दरवाजे से राज्यसभा में लाने का विधेयक पारित न किया जाए।
9. मैं पश्चिम बंगाल के सिंगूर और नंदीग्राम में अनशन करता तथा बुध्ददेव भट्टाचार्य की सरकार से कहता कि वे जनता का दर्द समझें।
10. मैं छत्तीसगढ़ आता और बस्तर जाकर अनशन करता कि सरकार और नक्सली दोनों को सद्बुध्दि आए कि बस्तर में हिंसा का तांडव रुके।
11. मैं दिल्ली में भाजपा मुख्यालय के सामने अनशन करता और नितिन गडकरी से अपील करता कि झारखण्ड में भ्रष्ट राजनेताओं के साथ मिलकर सरकार न बनाएं।
12. मैं न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े का इस बात पर विरोध करता कि अडवानी जी के कहने से उन्हें अपना इस्तीफा वापिस नहीं लेना चाहिए था।
13. मैं बंगलुरू में फिर से अनशन पर बैठता कि येदियुरप्पा तुरंत गद्दी छोड़ें और पार्टी हाईकमान के आदेश की प्रतीक्षा न करें।
14. मैं इस बात के लिए अनशन करता कि 2-जी मामले में जिन कम्पनियों के नाम आए हैं, याने नेताओं और अफसरों को जिन्होंने रिश्वत दी है, उनको भी ए.राजा और कनीमोझी के साथ जेल भेजा जाए।
15. मैं मुंबई में मुकेश अंबानी के गगनचुंबी महल के सामने अनशन पर बैठता कि इस देश में ऐसा ऐश्वर्य और आडंबर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
16. मैं यह संकल्प करता कि नीरा राडिया के टेप में जिन पत्रकारों के नाम आए हैं, उनके साथ कोई बात नहीं करूंगा तथा उनके चैनल व अखबार के लिए साक्षात्कार नहीं दूंगा, बल्कि उनका सार्वजनिक बहिष्कार करूंगा।
17. मैं भले ही एक दिन के लिए लेकिन मणिपुर अवश्य जाता और इरोम शर्मिला के समर्थन में अनशन करता।
18. मैं केन्द्र सरकार पर दबाव डालने के लिए अनशन करता कि सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून (आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पॉवर एक्ट) पर व्यापक विचार विमर्श हो और इसका दुरुपयोग रोकने के उपाय किए जाएं।
19. मैं देश के हर उस स्थान पर जाता जहां सवर्णों ने दलितों पर अत्याचार किए हैं और उनका तिरस्कार किया है, और अत्याचार करने वालों को सद्बुध्दि मिले, इसके लिए प्रार्थना करता।
20. मैं अनशन करता कि तमिलनाडु में सवर्णों द्वारा दलित बस्ती के सामने बनाई गई दीवाल तोड़ी जाए।
21. मैं सुप्रीम कोर्ट के सामने जाकर अनशन पर बैठता कि तमाम बड़े-बड़े जज जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं, अपना पद छोड़ें। मैं उनसे जस्टिस कृष्णा अय्यर की आवाज सुनने का आग्रह करता।
22. मैं 2008 में यूपीए सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठता कि वह अमेरिकी दबाव में आणविक ऊर्जा कानून बनाने से बाज आए।
23. मैं मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया के दफ्तर के सामने अनशन पर बैठता कि वहां रिश्वत का खेल बंद हो तथा देश में बड़ी संख्या में सरकारी मेडिकल कॉलेज स्थापित होने का रास्ता खुले ताकि आम जनता को सस्ती चिकित्सा सुलभ हो सके।
24. मैं इस बात के लिए भी अनशन करता कि शिक्षा का अधिकार कानून प्रभावी तरीके से लागू किया जाए और हर बच्चे को बिना भेदभाव के समान शिक्षा मिले। मैं महंगी फीस वाले निजी स्कूलों के खिलाफ धरना देता।
25. मैं अन्ना हूं, आज लोग मेरी बात सुन रहे हैं इसलिए इस बुनियाद पर मैं अपने सारे समर्थकों का आह्वान करता कि सांसदों के निवास पर सांकेतिक प्रदर्शन करने के बजाय वे अपने-अपने घर जाएं और अपने इलाके के भ्रष्ट पार्षद, भ्रष्ट अफसर, भ्रष्ट विधानसभा सदस्य और भ्रष्ट संसद सदस्य सबके खिलाफ अभियान छेड़ें और जनता उनकी जवाबदेही सुनिश्चित करें।
मैं चूंकि मैं हूं और अन्ना अन्ना हैं, इसलिए जाहिर है कि अन्ना ने इन सब मुद्दों पर सोचने की शायद कभी जरूरत नहीं समझी। इसलिए अब मैं अपनी बात कहता हूं कि भारत एक जनतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष समाजवादी देश है, जिसकी बुनियाद जवाहरलाल नेहरू ने डाली और जिसमें लालबहादुर शास्त्री ने नैतिकता के ऊंचे मूल्य स्थापित किए। यह शास्त्री जी ही थे जिनके कहने पर करोड़ों लोगों ने हफ्ते में एक समय का उपवास रखना शुरु किया; इतना ही नहीं, देश ने राजनीतिक और गैर राजनीतिक दोनों स्तर पर बहुत कुछ हासिल किया, गो कि बहुत कुछ करना बाकी है, लेकिन इसके लिए हठधर्मिता की नहीं, संवादधर्मिता की जरूरत है। अन्ना के द्वाररक्षकों की नजर बचाकर मेरा लेख उन तक पहुंच जाए, फिलहाल मैं इतनी ही उम्मीद करता हूं।
25 अगस्त 2011 को प्रकाशित
श्री सुरजन जी,
ReplyDeleteआपसे असहमत होने का कतई मन नहीं करता, लेकिन यहाँ इस आलेख में आपके तर्कों और और सवालों से, पूरी विनम्रता के साथ मै अपनी असहमति दर्ज करता हू.
पहली बात तो यह की अन्ना एक व्यक्ति नहीं समाज की उस हताशा और आक्रोश के प्रतिक है.जो सत्ता के छद्म ओर और उसके तिलस्म से मोहभंग के बाद उपजती है.आलेख में आपने जिन २४ बिन्दुओ का उल्लेख किया है, उनके मूल में क्या है,सत्ता का जन विरोधी चरित्र, सरकार की निरंकुशता,नैतिकता विहीन राजनीती, सत्ता और औद्योगिक घरानों के बीच पनपता षडयंत्र ,विकाश की आड़ में संसाधनों की खुली लुट क्या नहीं है? इन्हें आपने ही चिन्हित किया है, क्या चुपचाप अपनी नियति मानकर,मूकदर्शक बनी रहे जनता,ये सिर्फ अन्ना के ही मुद्दे नहीं है ,यह अन्ना की ही लड़ाई नहीं है, आपने २४ बिंदु रेखांकित किये है,ऐसे २४०० और २४००० बिंदु हो सकते है, एक अकेले अन्ना कहाँ २ विरोध करते रहेंगे और क्यों विरोध करे.,लेकिन यह जंग कही न कही से शुरू होनी ही थी, अन्ना न करते कोई और माँ भारती का सपूत करता,"मै भी अन्ना, तू भी अन्ना" का शायद यही निहितार्थ है, की यह हम सबकी लड़ाई है,
आप अन्ना के आन्दोलन का समर्थ करते है या नहीं,यह आपकी निजता है.
लेकिन अन्ना के मुद्दे,या आपके चिन्हाकित २४ मुद्दों से भला कोई असहमत हो सकेगा क्या?. आपकी वैचारिक दृष्टि बोध ने ,आपकी सर्जनात्मकता ने मुझे हमेशा प्रभावित किया है.बावजूद इसके मुझे लगता है, की अन्ना और भ्रष्टाचार के विषय पर आपने अपने लेखन के साथ जैसे न्याय नहीं किया है, निश्चित रूप से सत्ता और उसके सरोकारों के छद्म को उनके नियत को,लोकतंत्र की विद्रूपता को बेनकाब करने की अपेक्षा अन्ना की आलोचना,या उनके संघर्ष पर सवाल उठाना कही ज्यादा सुविधाजनक है.
विनम्र शुभकामनाओ के साथ.
युगल गजेन्द्र